नदी नहीं थकती | Nadi Nahi Thakati

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Book Image : नदी नहीं थकती  - Nadi Nahi Thakati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गर्क रहता है और खोटे धंधे दिन दहाडे करता है वह आपसे भी तो कहाँ डरता है? उसमें न धरम बचा है, न ईमान धरती पर वह घूम रहा है बनकर हैवान उपकार के बदले जी देता है अपकार ऐसे कृतध्न की: कोख मुझे हर्णिज नहीं चाहिए मेरे कृपालु। मुझे जैसे आजन्म मेहनती को जो गधा कहकर गाली देता है उसे खुद को आदमी कहते शर्म तक नहीं आती भोलेनाथ! है औढरदानी! अगले जमम में मेरी किस्मत में आप चाहे जो लेख लिखें-लिखाएँ पर बराये-मेहरबानी मुझे आदमी हर्णिज न बनाएँ। नदी नहीं यकती/27




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