धम्मपंद | Dhammpadam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डे ) चित्तवग्गों [ १३७
दोष; मोह) के फन््देसे निकलने के लिए यह चित्त
(तदफछाता है) ।
शआवस्ती कोई
३५--दुन्निग्गहस्स लहुनो यत्थ कामनिपातिनों ।
चित्तस्स दमथो साधु चित्त दन््तं सुखावहं ॥॥३।॥।
( दुर्निग्रहस्य लघुनों यत्र-काम-निपातिन ।
चित्तस्य दमन साधु, चित्त' दान््तं खुखावहम ॥३॥ )
अनुवाद--(जो) कठिनाईसे निग्नद योग्य; शींघ्रगामी , जहाँ
चाहता है वहाँ घला जानेवाला है; [ऐसे] चित्तका दुमन
करना उत्तम ऐ, ठमन किया गमा चित्त सुखद होता है ।
आवस्ती कोई उत्कणिठ्त सि
३६--सुदुहस सुनिपुरप्त यत्थ कामनिपातिन ।
चित्त रक्खेय्ण सेघावी, चित्त गुत्त सुखावहं ॥४॥।
( खुद॒दंशं खुनिषु्ं. यत्र-कामनिपाति ।
चित्त रक्षेत मेधावी, चित्त श॒ुप्तं खुखावहम ॥४॥)
अनुवाद--कठिनाई से जानने योग्य , अत्यन्त चाल्ाक , जहाँ चाहे
वहाँ ले जानेवाले चित्तकीं , बुद्धिमान रक्षा करे ; सुरक्षित
चित्त सुखप्रद होता है ।
श्रावस्ती संघरक्खित (थेर)
र७-द्रड्धम॑ एकचर असरीर गहासय॑।
ये चित्तं सञ्मसेस्सन्ति मोक््खन्ति सारवन्धना ॥५॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...