ऋग्वेद - चयनिका | Rigved - Chayanika

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Rigved - Chayanika by सिद्धनाथ शुक्ल - Siddhanath Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १९ ] चिरतन प्रकृति एवं समस्त सृष्टि काव्यात्मक हो उठी है। प्रकृति के एक-एक उपादान कवि कल्पना के माध्यम से सुन्दर रूप सजा कर हमारे सामने उपस्थित हो गये है। धरती से गगन तक कवि की क्रान्तिदर्शी दृष्टि पहुँची है और एक- एक उपादान का उसने स्पर्श किया है, केवल स्पर्श ही नही किया, वरन्‌ उसे सुन्दर से सुन्दरतर बताया है। कवि की क्रान्तदर्शी दृष्टि नें जिसका स्पर्श किया वह देवता बतकर उसकी हत्तंत्री को झक्ुत करता हुआ अतुलनीय ताल और लय में आबद्ध होकर दूमरों के मन को आह्वादित करने लगा | अपना तादात्य प्रकृति के साथ स्थापित कर सहजता से कवियों ने अपनी भावनाओं को नित्य नवीन अभिव्यक्ति दी। प्रात कालीन प्राची दिशा ने यदि उसके मन में सौन्दर्य की सुन्दर एवं कोमल भावना को आन्दोलित कर उषा के नित्य नवीन रूप को सज्जित किया तो नोल गगन मे प्रभा से परिपूर्ण सूर्यमण्डल ने उसके अन्तर्मन को प्रकाशित कर सवितृ एवं सूर्य सम्बन्धी गान का रूप धारण किया। जिस प्रकार दक्ष कारीगर रथ का निर्माण करता हैं और उसके एक-एक अश में अपने मन के सौन्दर्य को आरोपित करता है, अथवा जिस प्रकार बुनकर अपनी कुशलता से एक-एक तार द्वारा वस्त्र बुनता है वेसे ही ऋषियो ने स्तुतियों में अपनी कल्पना में समाये रूप को आकार प्रदान किया । इन्द्र ब्रह्म क्रियमाणा जुषस्व या ते सतब्रिष्ठ नव्या अकर्म । वस्त्रेव भद्रा सुकृता वसूयू रथ न धीर स्वपा अतक्षम्‌ ॥--कू ० ५.२९.१५ ऋग्वेद का अधिकाश देवताओं के प्रति की गई सहज उद्भूत स्तुतियाँ हैं जिनमें अमरो के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुये ऋषियों ने उन स्तुतियों को सरल, सौष्ठवपूर्ण भाषा, सुन्दर अलडूारो, विविध छन्दो एवं निश्चित लयो से आबद्ध कर उन्हे सुन्दर काव्य का रूप प्रदान किया है। ब्रन होफर ने इस सहज अभिव्यक्ति की प्रशंसा करते हुये कहा है कि--11 (9४6८ हि8ए९९१०७ $5%फा। (8 ज९ 128ए6 9 छार58 6 906७ 0जढााएु पछ 07 ०01 16 ग्राई5 01 फप्र[।ए8 (1165, 156 ४८१७ 1५ 116 11175 प्रताग्रापहु 011 0 कैपयाद्ायाएए १एछ०्शा]ए [006 2015830080९88 रण व छ[82801655 ( एल तेढा छलाऊ पा प्रवाइआ6प 1, जार, एए 15-41 ) ओल्डे० ने ऋग्वेद को 'सहज गतिशील प्रक्ृति काव्य! ( ७1806 7पर1- ८116 )२०(घ्ाए0८श९6 ) कहा है*» और साथ ही वेदिक काव्य में अलड्भार कराना न दृकतक कक सके .+वसा(सकेंश/1०,॥/नपम मजाक कैट जनाक.. शााकका.. रकम २७, #€त410:8८प्122, 9817012910 1903, 7, 208




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