महाबली इन्द्र | Mahabali Indra

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Mahabali Indra by सुशील कुमार - Susheel Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 3 से 00 ०0०0७ पुत्र के बड़े-से कटोरे में ऊपर तक भरा सोमलता का रस इन्द्र एक ही थार में पी गया और क्रोध से आंखें चढ़ा कर बोला, “बृहस्पति कह रहा था न? मैं जानता हूं। प्राज कई महीने से वह मुझ पर रुप्ट है । देखूंगा ।” उसकी हुंकार सुनकर पास वैठे युवक डर गए। भ्रग्निने कहा, “इन्द्र, तेरा पिता दुयौस भी तुभ पर रुप्ट है। “क्यों ?” “तेरे कारण उसका अपमान हुआ है। वह राजा है, तू प्रजा है। अध्विनीकुमार भी प्रजा हैं। बृहस्पति कहता है, प्रजा प्रजा को दण्ड नही दे सकती 7” इन्द्र खड़ा होकर वांहें तानता हुआ बोला, “मैं दण्ड दे सकता हूं। मैं न्याय कर सकता हूं। न्याय शक्तिशाली करता है। मेरी भुजाओं में शक्ति है।” उसने दोनों बांहें मोड़ी 1 मछलियां छटककर पत्थर की तरह कड़ी हो यः




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