सन्चारिणी | Sancharini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
833 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्ति-काल की अन्तचंतना
अपन प्राचीन साहित्य म हम यह भी देखते टे कि अन्त म
ट्रजडी का सम्पूर्ण भार गृहिणियों कै मस्तक पर ही करूणा का
ताज वनकर योभित होना हु, वनवास में सीता ओर कृष्ण-विरट
म गोपिकाएँ करुणा की. ऐसी ही सम्राज्ञियाँ हें। पुरुष ने टेजडी
का भार अपन मस्तक पर नहीं लिया, यह क्यों? पुरुष यदि
यह भार लता तो. यह उसका अनधिकार होता । इतना वडा
भार लेकर वह इस पृथ्वी पर शेष नही रह जाता । पथ्वी की
माँति हमारी गुह-देवियाँ ही. सवंसहा हैं, इसी लिए वे पृथ्वी की
कन्याएं है ; सीता. की. भमि-विलीनता इमी संकेत का रूपक है।
माताओं न जिस. संसार को जन्म दिया है, उसकी रक्षा के लिए,
प्रजा-वत्सलता के लिए, वे. वीरवाहुओं को जीवित-सुरक्षित
देखना चाहती ह । वे मरणान्तक वेदना स्वयं लेकर अपनी
स्मृति कौ संजीवनी से पुरुप को जीवित रहने के लिए छोड़
जाती ह। वे मानो विघाता की एक विदग्धतम कृति के रूपमे
सूखी पृथ्वी परर अश्रु-सिन्ध वहाकर चटी जाती हैं और पुरुष
माना एक कवि के रूप मे उनका स्मरण-कीत्तन करता. रहता
हैं। नारी, पुरुष के जीवन में जो. करुणा-घन छहरा जाती है,
उसी के कारण पुरुष शान्ति का प्रतिनिधि वन पाता है । करुणा
टी मनुप्यता हूं. । मनुष्यता के. महासिन्धु मे पुरुष अपनी
जीवन-नीका खता हं; मधु और कंटभ-जैसे जो असुर, मानवता
के सिन्धु को कुषित करते हौ, वह् उनका संहार करता जाता है।
२
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