शाकुन्तल नाटक | Shakuntal Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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No Information available about पं ज्वालाप्रसाद मिश्र - Pn. Jvalaprsad Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंक-? . ( २९८ )
झकुन्तला--( आपही आप ) जो अपनेको वशमें रख सकी तो ( प्रगट )
जानेकी आज्ञा देनेवाली अथवा रोकनेवाली तुम कौन हो ?
कर ( दादरा 2)
पियके बचत भूलि नहिं जेहों !
हियरेके अन्तर नित राखों, जो अपने वशमें हो. रेहां ॥
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(७
प्रथम मिलाप न देख सकत हे, मेरो श्रम केहिनभा मुलेहों |
नेह कि. 0 | की का
दयानेहं उपकार खुबोलानि, म॒ण्हू मनतें ना|हे मिटहां ॥
ममहित घरत कमलकर गगरी, याके पलटे भें कह देह
मिश्र भ्राण सर्वेस्व हमारे, तन मन वार नेह इन लेहों ॥२७७
राजा-( शऊुन्तछाको देखकर आप ही आप ) जेसा मेरा मन इससे लगा है
वैसा ही इसका भी मुझसे उलझा दिखाई देता है, अथवा मेरे मनोरथ हो
होनेके लक्षण ता दीखते हैं।
( दादशा )
मनकी लगन ये छिपाए छिपे ना,
यदपि ने बातन बाल मेलावत,
तदापि सुनत हितकर मम बेना ।
सनन्मख अपगय होत नहंह ठादी,
कियेहि रहत इतको दोठ नेता ।
यह सकुचाने यह नेह दहुन दिशि,
लखि लखि जिय अब धीर घरे ना ॥ २८॥
( नेपथ्यमें )
है हे तपस्वियो ! आओ, मिलकर तपोवनके जीवोंक्ी रक्षा करो, छगया
खेलता हुआ राजा दुष्यन्त समीप आ पहुंचा है, देखी: -
यह देखो कोसी धूर उड़ी सब बनमें छाई है ॥ आस्ताइ॥
घोड़ोंके पगोंसे उड़कर, पड़ती वसनोंप आकर ।
जो सूख रहे हें दक्लोंपर, धूसरता पाई हे ॥
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सन्ध्याकी अरूणता माही, टीड़ीदल ज्यों दरश्ाही ।
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