श्रावकधर्मसंग्रह | Shravak - Dharma - Sangrah

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Shravak - Dharma - Sangrah by दर्यावसिंह सोधिया - Dariyavsingh Sodhiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्‌ आपने अपने सोभाग्य वा परुषार्थ से जिसप्रकार विपक द्रव्य उपार्जन कियए है उसीपग्रकार आए उसे सत्कृशों मे व्यय भी ररते है. आपने पॉच काख रु० के अनुमान कई परोपकाएी व धार्मिक संस्थाओं मे दान करने के सिवाय पचास हजए रू० व्ययकर “जैन- धर्मशाका!', तीन राख के व्ययसे “'दि० जेनमहएविद्याकृरण'” ओर एक काख रुपये के व्यय से अपनी सह्थामिणी सै।० कंचनबाईजी के नाम से “दि० जैनश्राविकाश्रम” खोककर सर्वसात्थारण वा जेन- जाति का महत्‌ उपकार किया हे. आप के दानघर्म की इस प्रकार बहुकता से प्रसक्न होकर श्रीमती भारतवर्षीय दि० जैनथ्मसंरक्षिणी महा- सभा ने आपको ““दानवैए” व्दी पदवी से विभषित किया हें. आपके सत्समागम मे रहकर हमोरे पज्य-पितजीने यह “अजवक-घर्म संग्रह” नामक ग्रंथ अपने परिज्ञानए्थ संग्रह किया है. यह देशभाषा (६ हिन्दी ) मे है, इस कारण अत्पन्ञ मुमुझ्षु भी इस से बहुत राम उठा सकेंगे, यह जानकर में ने इसे प्रकाशित करने का सहस किया है. उक्त सेठ साहिब ने परमाशेवितरण करने के किये इस ग्रंथ को ४००)रु.की प्रतियोँ इक्दम केकर जो बहुमूल्य सहप्यता इसके प्रकाशित करने मे दी है, उसके किये तथा आप छी घम्मब॒ुद्धि व! सहुणो के किये मे सहर्ष और विनीतशातपवक 'बनन्‍्यवाद देता हं ओर श्री सबज्ञ-वीतरागदेव से प्रा्षेन' करत हैं, कि आप जिरजीवी होकर स॒द खप्रोपव्वए भे प्रवर्ते इस ग्रंथ के प्रकाशित करने एवं प्रफ संशोधनएंदि भे श्रीयुत भाई नाथूरामजी प्रेमी ने जे! अमूल्य सहायता प्रदान की है उस रे किये में उनका आमएँए हूं. कृतज्ञ- खूबचन्द सोधिया. बी, ए. एल, टी.




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