मेघदूत | Meghdoot

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ख ) यह दे कि कारण के अनुरूप ही कार्य होना चाहिये। रूृष्टि के आदि कारण शिव और शक्ति अथवा प्रकृति और पुरुष अविनाशी हे, तब प्रश्न उठना खासाबिक है कि उनकी शक्ति से विरचित यह जगत नाशवान्‌ फ्यों है ? यह जिज्ञासा चेतल्य मानव की शायद आदि काल से ही रही है और उपनिषदों में उत्तर यही मिला कि शिव और शक्ति का अनायास निरन्तर आंशिक योग ही प्रप॑चजन्य सृष्टि का मूल कारण है। इस शाश्वव अनायास संयोग का प्रथम आभास शिवाश आकाश! है ओर शक्त्यांश का “आमास' श्रपंच का द्वितीय तत्व “वाय' है। “आकाश' और वायु का युग्स अपने क्रम से अम्रि, जल और प्रथ्वी के तत्वों को उपस्थित करता है और विविध रूपा सृष्टि प्रत्यक्ष होती दे । ये गुछ्य रहस्य वेद-काछीन ऋषियों को उद्भासित ज्ञान के रूप मे प्राप्त हो चुके थे, जिनकी अभिव्यक्ति प्रायः उसी काल से वाणी के उन वरद-पुत्रो _के द्वारा श्राकृत ध्वनि चिह्ठ/ जो “अक्षर के नाम से प्रसिद्ध हैं, के माध्यम से पस्तुत होकर मुरक्षित एवं प्रतिष्ठित की गई थी। इस रहस्य का परिचय इस लिये और आवश्यक हो जाता है कि हम भारतीय वाद्धमय मे अनेक महत्त्व-पृ्ण ऐसे शब्द देखते चले आ रहे है जो केवल गंभीरार्थी ही नहीं, अत्यन्त गूढ्ार्थी, तथा संकेताथी के रूप मे युगो से व्यवह्त होते आ रहे 61 'काछ/ कला) 'र॒स, 'काली/ “वाणी, इत्यादि अगणित शब्द जो हमारे द्वारा आज भी व्यवद्यत होते है, उनके विपय में सोचना पड़ता दे छि उनकी व्युत्पत्ति क्यो ओर केंसे हुई होगी । केवल उनऊी प्राचीनता ही नहीं वरव्‌ उनकी “अथ-समृह-वद्धता! भी अपना विशेष महत्व रतती है। यही जिन्नासा हमे वाध्य करती है कि हम टन विशिष्ट शब्गे के गठन की अति-प्राचीन पद्धति को जानने की चेष्टा ऋरं। उस प्रछ्भूमि +े इन शब्दों से व्यक्त समस्त भारतीय तानराशि रुछ दूसरे ही रूप स हमार सामने आती हे | इस रहस्य का समक्काने से परन्परागन प्रचछित देववाणी के विविध खीकऋृत एक्ाक्षरी-काप बहुत दूर तक हमारी सहायता करते हे। इन्हीं के




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