मृच्छकटिकम् | Mrichchhakatikam

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Mrichchhakatikam   by जयशंकर लाल त्रिपाठी - Jayshankar Lal Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १३ अ० प्रथम शती का मध्य हो सकता है। इस काल की पुष्टि अन्तःसाक्ष्य और बाह्य साक्ष्य दोनों से होती है। इस वक्तव्य में 1४.६8. काले के विचार ध्यान देने योग्य हैं - (६) इस नाटक के कथानक के अनुसार उस समय बौद्ध धर्म उन्‍नत अवस्था में था। जनता में बौद्ध भिक्षुओं का सम्मान था। भिक्षु भी अपने धर्म का पालन सावधानी से करते थे । ईसा की पहली शती से ही बौद्धधर्म ह्वासोन्मुख हो चला था । अतः: इसकी रचना इस काल के पहले की होनी चाहिये, जैसा कि भण्डार- कर ने बताया है कि आन्भ्रवंशीय राजाओं के समय बौद्ध धर्म उन्नत अवस्था में था । (२) नवम अंक में अधिकरणिक ने “अज्भारकविरुद्धस्य/ [ ९1३३ ] इस श्लोक में मंगल को वृहस्पति का शत्रु ग्रह बताया गया है। यह मान्यता वराहमिहिर से पहले की थी । वराहमिहिर का काल ई० ५०० के ल/्भग माना जाता है। अतः इससे काफी पहले ही इस मृच्छकटिक की रचना हो जानी चाहिये । (३) '“वैशिकी कला * का उल्लेख तथा किसी वेश्या के नायिका बनने की कल्पना वात्स्यायन के कामसूत्र की रचना के समकालीन या उसके बाद होनी चाहिये । कामसूत्र की रचना ई० १०० के अनन्तर नहीं मानी जा सकती । अतः मृुच्छकटिक भी इसी के समीप का होना चाहिये | (४) नाटयकला के ऐसे अनेक नियम बाद में प्रचलित हुये जिनसे मृच्छक टिक का कर्ता परिचित नहीं प्रतीत होता है। उदाहरणाथं-किसी पात्र के विशेष प्राकृत बोलने का नियम, रखों की प्रधानता का नियम आदि | इसके अतिरिक्त मुच्छ- कटिक में भास के समान सादगी और सरलता है। इसकी शली कालिदास के समान न तो परिष्कृत है और न भवभूति के समान कलापूर्ण । अत: ऐसा प्रतीत होता है कि मृच्छक्टिक की रचता संस्कृत नाटकों के आरम्भिक काल की है । (५) मृच्छकटिक की प्राकृत भाषायें व्याकरण के नियमों के सर्वथा अनुकूल नहीं प्रतीत होती हैं। वे प्राकृत भाषा के प्रारम्भिक विकास को सूचित करती हैं । इससे कालिदास की अपेक्षा शुद्रक की प्राचीतता सिद्ध होती है । उपयु क्त विवेचन के आधार पर यह निःकषें निकलता है कि शूद्रक कालिदास से प्राचीन हैं। क्योकि रामिल तथा सोमिल ने शूद्रककथा' लिखी थी और कालिदास ने सोमिल का उल्लेख किया है। यहाँ शंका हो सकती है कि कालिदास १. मृच्छकटिक भूमिका ?४.४९. काले पृ० ३२ में । २. मृच्छकटिक १॥४।




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