दशकर्मपद्धति | Dash Karm Paddhati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' - Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-
भूमिका।
दा
प्रिय पाठकवृन्द !
हमारा यह प्यारा भारतवर्ष आजतक सम्पूर्ण देशोकी अपेक्षा सवही वातोंमें
चढा बढ़ा इआ रहा था। यहांके दानवीर कर्ण, महाराज प्रात/स्मरणीय हरि-
अन्दर, युद्धवीर अर्जुन, धर्मवीर महाराज घुघिप्ठिर, महाँपर जैमिनि, झुनिवर
भगवान् कृष्णद्रपायन श्रीवेदव्यासजी, कपिझ तथा कणाद् इस्पादि इसी भारत
माताके छाल थे, कि जिनके चरित्र तया अन्थोकोी अवढोकन करनेसे मनुष्य
संसारसागरसे तर जाते हैं) इसका कारण एक्रम्रात्र संस्कार है । ' संस्कार
शब्दका अर्थ सुधार हैं जिस प्रकार हीरा पापाणकी आकर (६ खानि ) से
निकलकर शानके संस्कारहीसे पूल्यवान् होता है इसी प्रकार मनुष्य सध्फारसेही
द्विजाति होता है । जैसा कि, मचुजी महाराजने कहा हे “ जन्मना जायते शाट्ठों
संस्फाराद्विज उच्यते * अथांद जन्मसे मनुष्य शद्र होता है किन््त संस्कारसे द्विज
कहछाता है जन्मसे छेफर सृत्युपर्यन्त सोरूद संस्कार होते हैं यथा-
गर्भाधान १ प्रुंसवन २ सीमन्तोत्षयन हे जातकर्म ४ नामकर्म ५ निष्क्रमण ६
अजन्नप्राशन ७ चूड़ाकर्म < कर्णवेध ५ उपनयन १० वेदारंभ ११ समावर्त्तन १९
पिवाह १३ चतुर्थी १४ स्ततक २८ पोडदा € दशाह 2 १६।
अथ सय द्विज्ातिमात्रफको चादिये कि इन संस्कारोंको करके ऐटिक और
प्रारमार्यिक फल प्राप्त को, कारण कि इन्ही वेदिक संस्कारोंके करनेपर द्विज,
ब्राह्मग और विप्र पदवियेकों प्राप्त किया जाता है । अनाचाररददित व पॉटिफ
कर्म करनेसे और ब्राह्मणी व क्षनियाणी तया वेश्यानीकी योनिर्म जन्मा हुआही
आद्षण, क्षत्रिय वे बेश्य होता ह अतएवं सव किसीको असच्त्यन्त भक्तिसहित वेदोक्त
संस्कार अवश्य करना चाहिये ओर इसी लिये सब ऋतषि मुनि ब्राह्मण व विद्वान
पुरुष तथा ख्री आजतक इन संस्कारोको परम श्रद्धासे मानते ओर कम्ते
चढे आये हूं।
भेरी बहुत डिनोंसे इच्छा थीं कि कोई संस्कार विपयका उत्तम प्ुस्तर् रचा
जाय जिससे मनुष्य अपने वेदोक्त संप्कार करके उत्तम फलके भागी बने-इसी
बीचमें पिद्यामचार निरत अखण्ड प्रतापश्ञाली श्रीविकटेश्वर स्टरीम येन््त्राल्याध्यक्ष
मुम्बई मिवासी श्रीमार् सेठ खेमराज श्रीकृष्णदासजी महोदयकी आज्ञा मिली
कि ' आप दशकर्म पद्धाते ' का भाषालवाद कर दीजिये हम छ!पिगे । उक्त महो-
ढयकी आज़ा पातेही मेंने भाश्तासे इसका भाषान्तर करके सर्वसत सहित
ज
User Reviews
No Reviews | Add Yours...