देवता विचार | Devta Vichar

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Devta Vichar  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर ६; 7 ् न है ््‌ ब ि थे # हि कि देवता-विचार । बेदोंका अम्यास्त करनेके समय, यद्‌ सबसे कठिन कोई प्रश्न सामने आता है, तो “ देवताओंका प्रश्न ” है। देवता किप्तको कहते हैं ! और उनका स्वरूप क्‍या है ! इनका जब तक निश्चया- त्मक उत्तर नहीं दिया जाता, तब तक मंत्रोंका निश्चित अथ जानना भी अत्यंत कठिन है । वैदिक वाइमयमें “देव और देवता ” शब्दोंके अथे इतने संकीणे और व्यापक हैं, कि उनको देखनेसे 'पढनेवाढेका मन चक्करमें पड जाता है । इस ढिये वास्तवमें सबसे प्रथम यदि किप्ती बातका निश्चय करना आवश्यक है, तो इसी & देवता ” विषयका है। सब दिद्वानोंके प्रयत्न सबसे प्रथम इस बातमें छगने चाहिए | देवताका संबंध प्रत्येक मंत्रग आता. है। 'इस्त लिये हरएक मंत्र पढनेके समय देवताकी निश्चित करपना सबसे 'प्रथम पाठकके मनमे खडी होनी चाहिए । प्राचीन परंपराके अनु- सार यदि देखा जायगा तो “ छंद-ऋषि-देवता ” का निश्चित ज्ञान हेनेके पुवे मंत्रका अथे-विज्ञान हो ही नहीं सकता। इतना इस विषयका महत्व होनेसे इसका थोडाप्ता स्वरूप पाठकॉके सन्मुख रख देनेका संकल्प किया है, आशा है कि पाठक इसका अधिक ; विचार करेंगे । देवोंके माताओंका वन निम्न मंत्रमें देखिए-- >अधारयो रोदसी देवपुत्रे प्रत्ने मातरा यह्दी ऋतस्य ॥ .. हक. ३॥१७७




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