विश्वदिग्दर्शन | Vishvadigdarshan

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Vishvadigdarshan by रामरत्न थपल्याल - Ramratn Thapalyaal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका मैं उस सत्य आनन्द ऑर-कानमय--साश्चिदानन्द परमात्या का काटिश: नमस्कार केरता हूँ, जे अपनी खत्य पुरणा से संसार-कव्याण के लिये अपने भक्तों की बुद्धि में सत्य रूप से एकाशित हो कर सत्य ज्ञान उत्पन्न करता है। उसकी सनन्‍्वगण शक्ति से विश्वविशट्‌ ओर पाणियों के शरीर उत्पन्न होते हैं, जिस से प्राणियों का उस के सत्य छ्वान के विना आनन्द नहीं हो सकता | (९७ मुझ में इतनी येग्यता नहीं कि में निराधार “विश्वदिग्दशेन के लिख सकता। किन्तु परमाय्मा सर्व समर्थ है और आत्मा परमात्मा ही है। यह पुस्तक केवल आत्मा का अनुभव मात्र है। बिना शुद्ध अनुभव के इस का एक दाब्द भी नहीं लिखों गया। हुद्ध ज्ञान स कार्य करना ऋव्याणकर है। महात्मा ज़न अपने कव्याण के साथ साथ संसार का कल्याण करने में समर्थ होते है । आत्मा सर्च समर्थ है। उस की सामर्थ्य में काई कार्य दुर्लभ नहीं | स्वप्न की सृष्टि, जिस के हम स्वप्न भे देखते है, क्या उस को रचने वाला कोई अल्पक्ष हो सकता है? अगर वह अद्पक्ञ माना ज्ञाय ते स्वप्न की सृष्टि रचने में कान स्बश् दो रहा है? भेद सिर्फ इतना है कि सर्वज्ञ जिस परदे पर अपनी अनन्त सामथ्य से स्वप्न की सृष्टि रचता है, वह असत्य का है। इसलिये




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