श्वेताश्वतर - उपनिषद | Swetashwatar - Upanishad

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्वेताश्वतर - उपनिषद  - Swetashwatar - Upanishad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महेशानन्द गिरि - Maheshanand Giri

Add Infomation AboutMaheshanand Giri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उपोद्घात यश्नत्वा यतय सर्वे शिवयोगे स्थिरामवन । महेश निर्मल वन्दे श्वेताश्वतरकं प्रश्ुम्‌ ॥ वेदिक साहित्य मे वतंमान उपलब्ध शाखाओश्रों मे सबसे भ्रधिक शाखाये कृष्ण यजुबंद की पाई जाती है। जबकि ऋग्वेद की एक, ग्रथवंवेद की दो, सामवेद की तीन एवं शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाये पाई जातो है, तब केवल कृष्ण यजुबेंद की तेत्तिरीय, काठक, कपिप्ठ- काठक एवं मेत्रायणी शाखाये प्रकाशित हो चुकी है, तथा कुछ शाखाश्रो के हिस्से भी प्राप्त हो चुके है । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी काल में यजुवंद, तत्नापि कृष्ण यजुवेंद, का कितना अ्रधिक प्रचार रहा होगा । इसी कृष्ण यजुवेंद को शाखाग्रो मे श्वेताश्वतर शाखा भी आती है । बहुत दिन प्रयत्न करने पर भी हमे इस शाखा का मत्र, ब्राह्मण एवं श्रारण्यक कुछ भी उपलब्ध नही हो सका। केवल मात्र श्वेताश्वतर उपनिषद्‌ इस शाखा का एकमात्र ग्रन्थ बच गया है। स्वभावत इसका सम्यक्‌ परिशीलन करना दुस्साध्य हो गया है, क्यो कि यदि श्वेताश्वतर शाखा उपलब्ध होती तो हमे उसी सदर्भ में वेसे ही उपनिषद्र्‌ का विचार करने का मौका मिलता, ठीक जैसे हम ईशा- वास्य उपनिषद्‌ के श्रण्ययन मे काण्व शाखा के द्वारा उपक्ृृत हुए हैं। फिर भी कृष्ण यजुवेद के मत्रो मे शाखाभेद होने पर भी काफी साम्य मिलता है एवं कपिष्ठ काठक सहिता का श्वेताश्वतर वालो से कुछ वेसा ही सम्बन्ध रहा है जेसा कि शाकल्य शाखा का बाष्कल शाखा से । खिल काण्ड से श्रतिरिक्त चू कि विशिष्ट भेदो का समर्थन नही मिलता, हमने भी इसी दृष्टि से श्वेताश्वतर का विचार करते हुए प्रधानहूप से कपष्ठ काठक का स॒दर्भ रखा है एवं कही कहो तेत्तिरीय ब्राह्मण एवं तैत्तिरोय आरण्यक का श्राघार लिया है, क्योकि कपिए्ल कठ के ब्राह्मण एव आरण्यक हमे केवल हस्तलेख रूप मे देखने को मिले जितका बार बार प्र+भ्यास करना सम्भव नही हो सका |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now