श्री गोरख बोध वाणी संग्रह | Gorakh Bodh Vani Sangrah

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Gorakh Bodh Vani Sangrah by रामप्रकाश महाराज - Ramaprakash Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोरख बोध वाणी संग्रह ... २५ (सुरता-पवन) के मानस संगम को लेकर मर्दा सथाने उनमन (समाधिस्थ) ध्यान में रहे । गोरख उ्ंच (२७) स्वामीजी ! कोएों घर कोणे बास, कोणे गर्भ रहा दश मास | कोण मुखि पाणी कोण मुखिता खीर, कोण दिल्या उत्पत्ति भया शरीर ॥५३ भावाथ -- है गुरु! किस घर में किस का निवास है ? गर्भवास में दश माह कौण रहा ” किस मुख से पाणी भी खोर (दूध) के स्वाद में हो जाए तथा किस दिशा में शरीर की उत्पत्ति हुई है । श्री मच्छन्द्र उवाच अवध ! अनिलु आतम बास, आया गर्भ रह्या .वश मास । नाभि कंवल भुखि पाणी खीर, वायुक्वार शनतपति भया शरोर ॥५४ भावाथ--हे योगी ! श्रग्नि . भवन स्थल पिण्ड आत्मा ने निवास किया, कहों श्रपने श्रहता ममता करि संसार चक्र में जन्म मरंण पाकर वासना से गर्भवास में झाया। नाभी स्थाने नागनि मुख पलटने से मूर्दधा-दट्वितः जल ही दूध श्रमृत स्वरूप प्राप्त होता है। प्राण-वायु के स्तम्भ बंध से स्थल शरीर को स्थिति है ।




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