अणुव्रत की ओर भाग - 2 | Anu Vart Ki Or Bhag - 2

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Anu Vart Ki Or Bhag - 2 by मुनि श्री नागराज जी - Muni Shri Nagaraj Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ राप्ट व सस्कति का नव निर्माण --मी पुष्यौत्तमदाल भार्भध इस समाज में जहां बैज्ञातिक युय भाय बड़ता बल्ता था रहा है बहां हम यह नहीं चाहत कि झपते जीवश का बहुमूस्‍््प समय प्राष्पारिमिकता की प्रोर क्ष्च न करें। जाएदीय संस्कृति सर्व श्याय प्रबात रही है भौर देशवासियों का प्राचराप भौ भ्रक्छा रहा है। चिरकाल ठक जीवित रहने बाले महपि-महारमाओं न भी भही कहा है कि मानव माज का भाच र ण॒ प्रष्छा हो । पधुप्रों के समास प्राचरण न हो 1 बैसे यह संसार गृख भौर प्रबगुण मणाई भौर बुराई दा्सों की खाग है । हम दूध से बुकानों पर जाते हैं। भगर हम #स होस तो दूध को चुन मैते भौर पानी को स्याप देते । इसीलिए संसार के समस्त मुर्ग्यो को रूमे के लिए हम सदा- अरगौय अनना 'बाहिए। परमारमा म॑ जिस स॒पष्टि की रचना की ई बहां मशाई के साप शुराई भौर्पदा हो मई ई। सेकिल पराज्रार्य भी तुलसी जैपों क छाप रहकर हम जान सकते हैं कि हमें प्रपत जीअल में कौस-सा मार्ग प्रपगाना जाहिए। धगर इसमें सत्युरुप बनना हूं तो सदुपदेर्शो का ही प्राचरण करना चाहिए । प्रगर हमे पपने समाझ रा द मस्तृति का कस्याण करना है तो प्राचार्य श्री हुलसी के मार्ग पर चलता 'बाहिए। हम प्रपणे जीबत में धरपुद्वत क हारा प्रमैदातेक बड़-बढ़े कार्य थ सुधार कर सकते हैं। इतों कै हरा हम प्पने जोबस को बिकासोन्मुख व सदाचरपीय बता सदते हैं। मानय ऊीबत के ब़्पाण के लिए पंथ महादर्तों गा पालन काना प्राबश्पक है । ध्राचाय श्री तुशसी के उन सम्दों को मैं भूल गहीं सकता हि श्रद्धा भौर दिप्बास गय सेकर ही हम समाज को उस्नति के मार्ग पर प्रद्भार कर सफते हैं । १३




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