इतिहास चक्र | Itihas Chakra

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Itihas Chakra by राम मनोहर लोहिया - Ram Manohar Lohia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चक्र सिद्धांत फट -रहना हर संस्कृति की एक वड़ी विशेषता है ओर उसका चुनियादी गुण है कि खेद प्रकट करकें था श्रन्य चतुर तरीकों से झपने को यूचावे । ऐसा श्न्तजन, जो झपने से बाहर की _झसलियतों को घुद्धिपूर्वक स्वीकार कर ले, चहूत कम सिलता है । कला कुछ समय पहिले परिचमी युरोप में श्रोस्वाल्ड स्पेंगलर का चक्र सिद्धान्त फ़ैशन में था । ऐतिहासिक व्याख्याों में भी. फैंशन होते हैं जिसने पश्चिम के पतन पर लिखा था, शोर जिस का विचार था कि हर संस्कृति और सभ्यता जन्म, विकास श्रीर मरण, वसन्त, गर्मी, पतभाड़ श्रीर सर्दी की विभिन्न सीढ़ि यों से होकर गुजरती है, इससे बचने का कोई' रास्ता नहीं कि हर संस्कृति गिरावट में आकर पहिले सभ्यता का रुप लेती है शरीर तब खतम दो जाती है । हर संस्कृति, चाहे वह कितनी भी ऊंची क्यों न उठ जाय अचद्य ही नष्ट हो कर दूसरी को जगह देगी । मैं स्पेंगलर का सिफ एक उदाहरण दू'ग! जिसमें उसने लोगों के उत्थान श्रोर पतंन का फर्क बताया है । उत्थान में संस्कति होती है श्रौर पतन में सभ्यता । संस्कृति की श्रवधि में लोग एक था दो मंजिले मकान वनाते हैं जो वातावरण में मिल जातें है | शोर आस-पास की 'प्रकृति का ही ्ग मादम पढ़ते हैं । सभ्यता कीं श्वधि भ्द पांच या छु या श्रौर भी ज्यादा -मंजिलों के सकान चताये जाते हैं, जो 'पूथ्वी के साथ श्रनाव्वार है । व इतिहास के ऐसे दर्शनों ने जो पश्चिमी सभ्यता के कायल हैं, एक ढी 'दिशा में लगातार था सर क-रुक कर हुई प्रगति को सान लिया है । ऐसे लोगों का कोई खास जिक्र करने की जरूरत नहीं जिनकी र्‌्य सें मनुष्य एक पुरा- तन स्वर्ण युग से वरावर गिरता चला झा रहा है क्योंकि इनका कोइ श्राम था स्थायी झ्रसर नहीं पड़ा । वरावर बदलते हुये मशीनी ढंग ने, जो परिचिमी सभ्यता श्रौर पूजीवादी आार्थिक संगठन की विशेषता है, प्चिमी मनुष्य में भी अपने भविष्य के प्रति एक स्वस्थ विंश्वास पैदा कर दिया । हर श्रादमी




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