समरसार | Samarsara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' भूमिका! “(७). 'झँसट नहीं करनी पडती है जो कुछ अच्छा ब॒रा फल हो चटपद माद्म “ होजाताहे। और वह सच्चा मिलता है। कितने बड़े गौरवकी बात है कि न एक छोटेपे अन्य्त संसारका महोंपकार करनेवाले घड़े चढ़े काम भरे हुए हैं। यह सर्च कुछ होनेपर भी आजतक यह ग्न्य भाषारका सह्दित्त कहीं प्रकांशित नहीं हुआ है। इस ग्रन्यपर संस्कृत्तमें दो शैका प्राप्त हुई हैं | प्रथा. भरतटीका * है और इूसरी रामदटीका है किन्तु इन दोनों उत्तम दीकाओंके होने परभी किसी किसी स्थरमें यह ग्रन्थ ऐसा अड़जातहि कि विद्वानोंको भी इसके चढानेमें छुछ अम करना पड़ता है। अत एव विद्वायसे लेकर संवंताधारणपयेन्त यह ग्रन्य सबके उपयोगमें आसके ऐसा होनेके ढिये श्रीमान्‌ सेठ खेमराज श्रीकृष्णदासनीके आग्रह और चीर॑ रामके आश्रित ज्योतिपरत्न पं० झूंथालालनीकी अनुमातिसे मेंने इसकी कई एफ हस्तलिखित प्राचीन प्रतियाँ एकन्र फरके संस्कृतटीफा और भाषादीका सहित इसे तैयार किया है। यह ग्रन्य सर्वताधारणकी समझमें सरलूतासे आसके और इसका असली आशय स्पष्टरूपसे विदित होसके इसलिये इसमें कप्रकारके उदाहरण, उपदेश, चक्र, अन्वयांक और ्प्पिणी आदि संयुक्तकरके इसको सर्वागसुन्दर बनानिकी पूरी चेष्टाकी है । भगवान्‌ बम्बइके “ आवेकटेश्वर ” प्रेसके अध्यक्ष श्रीमान्‌ सेठ खेमराजजीके भाग्यमास्करफों उद्त रकखें । आपने भारतीय अन्यरत्नोंके अस्तित्वकी रक्षाके नि्मित्त मुक्तहृस्त धनव्यय करनेमेपका प्रण कियाहे । समरसार जैसे अम्ाष्य अन्यरेल्नोका सम्प्राप्त होना आपदीके सद्विचाएका फल है । 4




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