निरुक्त शास्त्रम | Nirukt Shastram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे एक देवी सद्दायवा--ऐमी स्थिति मे एक अभूतपूर्व घटना घटी । उत्तर प्रदेश सरकार ने भारतवर्ष का वृहद्द इतिहास, भाग द्वितीय का महत्त आड्डा | तदनुमार सन्‌ १९६२-१९६३ में २५००) र० का थी नरेद्धदेव पुरस्कार इस पुस्तक पर मुझे भेट क्या गया । इस पुरस्वार योजना समिति के अध्यक्ष थे भरी सम्पूर्णानन्‍्द, राज्यपाल, राजस्थान । वर्तमान कई एतिहासिको को यह बात अखरी। पर तीर धलुप से छूट चुका था । अरेक मभारतोय विद्वानों ने इस इतिहास्त की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की । भाषा का इतिद्वास भी विकासमत के विरुद्ध-डाविन ने अपने प्न्य प्रकाशित कर दिए | उस का स्रमकालिक श्लाईशर नाम का एक जर्मन विद्वान्‌ था। उस ने मापा के इतिहास के आधार पर डाविनमत का खण्डन किया । उस का कहना था कि पूर्व से पूर्वतर ओर पूर्वतम कॉल की भाषाएं अत्यधिक समृद्ध और पूर्णता क्र अधिकाबिक घ्वेहए धारण किए हैं। इस सत्य सिद्धान्त का उत्तर आज तक जिसी से नहीं बत आया । स्पष्ट है कि डाविनमत की टक्कर जब भाषा के इतिहास के अमेद्य शैल से हुई, तो यह मत परास्‍्त हुआ । यही नही विद्वानों की दृष्टि में जीर्गाशीर्ण हो कर यह सर्वया गिर गया ।* निष्कर्प--इस प्रकार ययार्य इतिहास के सभी पक्ष यहो परिणाम प्रस्तुत करते हैं कि ज्ञान के समूर्ण क्षेत्र के मुदीर्ष काल में उत्तरोत्तर हाप्र ही हास होता गया है ! इस हास का एक कारण है। मानवबुद्धि का युगयुग में हम की ओर जाना । आज जो शिज्पोन्नति ओर कई अन्य क्षेत्रों में अपर के विकास दिखाई देते हैं, उन मे यथायं ज्ञान का अंश बहुत थोडा है । यान्त्रिक उन्नति निस्सन्देह गत दो तीन सौ वर्ष मे पर्याप्त हुई है, पर वह अभी प्राचीन काल की शिल्पोनति की सीमा तक नही पहुँच पाई। भरहझ्ज ऋषि ने आकाश गद्ा मे स्नान किया था ) इस सत्य को जो नहीं मानता, बह उस के अपने अज्ञान का दोप है । मारतीय इतिहास का अन्वेषण हमारे मंथन की सत्पता का पोपक है। विकास मत का खण्डन यहाँ अति संज्षेप २. इस विषय का अ्रधिक विउेचन मद्रचित मापा का इतिद्वास, दतीय संस्करण, दूसरा ब्याज्यान में देखें । डे




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