सिद्धान्तबिन्दु बिंदु | Siddhant Bindu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २५२ )
दृष्टिसष्टिबाद भादि कितने ही वेदान्त के मुख्य-मुख्य पदार्थों की ऊहा-
पोहपूर्वक हृदयज्ञम व्याख्या की है। आस्तिक एवं नास्तिक सभी
दार्शनिकों के मत में होनेबाली आत्मविषयक विश्रतिपत्तियों तथा.
अनुपपत्तियों का खण्डन कर अद्गैतवाद के सिद्धान्त की बड़े रोचक
ढंग से पुष्टि की गयी है | इसके अतिरिक्त अनेक विषयों में शक्लाओं
का समाधान किया गया है | मूलभूत तत्त्व कितने हैं ? अनेक प्रकार
के व्यापारों से युक्त बाह्य सृष्टि का क्या खरूप है ? जन्म, स्थिति,
मरण के मूल-कारण कौन-कौन हैं ? झुख, दुःख, राग, द्वेष आदि रूप
आमभ्यन्तर सृष्टि का वास्तविक रूप क्या है ? और उसके मूछ-कारण
कौन हैं ! इत्यादि प्रश्नों के विविचन में यह निबन्ध पराकाष्टा को
पहुँचा है ! प्रथम तथा अष्टम इलोक की व्याख्या में तो आचार्य ने अपूर्व
कौशल दर्शाया है, वेदान्त के सभी पदार्थ निचोड़ कर रख दिये हैं ।
यह ऊपर कहा जा चुका है कि प्रस्तुत पुस्तक वेदान्त-सम्बन्धी
है | इसलिये यहाँ पर इस विषय में निवेदन कर देना ग्रसह्नतः प्राप्त
है कि वेदान्त किसे कहते हैं ! वेदान्त है वेद का सार भाग । वेद
तीन भागोंमें विभक्त है--( १) कर्मकाण्ड, (२) उपासनाकाण्ड'
एवं (३ ) ज्ञानकाण्ड | ज्ञानकाण्ड ही वेद का सार है (उसी का
दूसरा नाम है उपनिषद् , क्योंकि उपनिषदों में ही आत्मविषयक ज्ञान
की आलोचना एवं विचार किया गया है, अतः सिद्ध हुआ कि
उपनिषद् भाग का नाम वेदान्त है। उक्त ज्ञानकाण्ड के तात्पर्य के.
विषय में अनेक विरोध होने के कारण उसकी मीमांसा के हेतु ब्रह्म-
सूजन का निर्माण हुआ, अतः उसकी भी वेदान्त में गणना होनी युक्त
हैं। भगवान् श्रीकृष्ण के श्रीमुख से उद्भूत गीता में उपनिषदों का सार |
भरा हुआ है, इसलिये उसको भी वेदान्त कहना समुचित ही है। यद्यपि '
| वेदान्तपद से मुख्यतया प्रस्थानत्रयी---उपनिषदू, ब्रह्मसूत्र, एवं गीता
' का ही बोध होना चाहिये था, तथापि उनके अर्थ का व्युत्पादन कराने.
एवं उनके अनुसारी होकर जीव-ब्रह्म की एकता का निरूपण करने कें
+ ऋच्त
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