कठ्वल्ली उपनिषद् | Kathvalli Upnishad
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६)
होके ८ उपनिषद ? शुब्द' लिझ होता है । दिल ८ उपलिप्द 2
झदद हरके कऋथधनाीय झनन््ध आदतिपषाहल मल न [ जी नई
अथोत् बह्नविध्या कही जाती है । जे सुसुक्षु देखे चुने झथात
इसलोक परलोकके विषयोंकी लृण्णा लेइच हुये < उपाने-
बढ ? शुद्दवाच्य विवद्याको अथात् < उपानिषद् > शुध्द करते
यबोधित ब्रह्मत्िव्या को जाल हो नेश्चयपूवक ब्रह्म
अश्षेदर्की पिचार करते हैं सिनके अधियादि से स्वर के बीज
के नाशु करने से बह्मदिव्य उपनिषद् कही जाती है क्योकि
' निचाय्य ते खत्युसुखात्मकुच्यते ' यह इसही उपनिषद्ध वही
लुतीया बच्ची की पन््द्रहदी ऋचा में के प्रमाण से छछ्मविषव्या का
भयोजन संसार की निच्व्िरूष देख्यया है ॥
.. आर सुलुक्षुजनों को सनीप निश्चय करके झास करे
अर्पत्ता का सो काहेये < उपानेषद् > अथोत् * उप! कहते हैं
सल्ीपक्ो ऋरु “नि! कहते हैं निश्चय वा निरम्तरको अर
जद ? धातु बत्यथक मानी है रू गातिपदका अर्थ शाप्ति
भरी है ताते जो झमुक्षओं को समीप अथोत अपने ऋपचिये
निश्चयपूर्वक निरन्तर भाव आथात् अशेद्यावसे बह्तको प्राप्त
करे जो दिया दिसका भा
्
शव ई!
हक 11]
पु
ऋ्य्घडू
|
क् उपनेडद > है । त्ात्द | अहुय-
जछा धरजोसूद्िसुत्यु: । देसे के इसही उपानेषद की छठी
जेक्का के अन्त में कहेगे ु
और स्वयं
1 ज साकपण भाछिके साधनत्व करके रू गर
जरधद उपब्पष ससह जो दहाल्त से वारंवएर ह्
नाशुकत्व करके ब्थात्
ज्लविद्य सी «८ उपनिषद
विद
|
टी 2
री
संवास
इस होते
त् उनको शिथिरता प्रत्षकरदे
5 > इरके कही जाती.है सो भी
पग असुतत्वे भजन्त? इत्यादि स्पदछ कहेंगे ॥
| उपनिषद् शूब्दकरके पछ्े जानेवाले झन््थ
के से ८ उपनिपद् » पढ़ताहों में ८ उपन्िषद-
21/८1£ 4॥
७1
्ध
011
च्क्यू
५8
«दर
4]
०
रथ
4]
9)
५44 ञ्ज
| कर
2
तल
|
/
रा
ला
724
User Reviews
No Reviews | Add Yours...