कठ्वल्ली उपनिषद् | Kathvalli Upnishad

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Kathvalli Upnishad by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) होके ८ उपनिषद ? शुब्द' लिझ होता है । दिल ८ उपलिप्द 2 झदद हरके कऋथधनाीय झनन्‍्ध आदतिपषाहल मल न [ जी नई अथोत्‌ बह्नविध्या कही जाती है । जे सुसुक्षु देखे चुने झथात इसलोक परलोकके विषयोंकी लृण्णा लेइच हुये < उपाने- बढ ? शुद्दवाच्य विवद्याको अथात्‌ < उपानिषद्‌ > शुध्द करते यबोधित ब्रह्मत्िव्या को जाल हो नेश्चयपूवक ब्रह्म अश्षेदर्की पिचार करते हैं सिनके अधियादि से स्वर के बीज के नाशु करने से बह्मदिव्य उपनिषद्‌ कही जाती है क्योकि ' निचाय्य ते खत्युसुखात्मकुच्यते ' यह इसही उपनिषद्ध वही लुतीया बच्ची की पन्‍्द्रहदी ऋचा में के प्रमाण से छछ्मविषव्या का भयोजन संसार की निच्व्िरूष देख्यया है ॥ .. आर सुलुक्षुजनों को सनीप निश्चय करके झास करे अर्पत्ता का सो काहेये < उपानेषद्‌ > अथोत्‌ * उप! कहते हैं सल्ीपक्ो ऋरु “नि! कहते हैं निश्चय वा निरम्तरको अर जद ? धातु बत्यथक मानी है रू गातिपदका अर्थ शाप्ति भरी है ताते जो झमुक्षओं को समीप अथोत अपने ऋपचिये निश्चयपूर्वक निरन्तर भाव आथात्‌ अशेद्यावसे बह्तको प्राप्त करे जो दिया दिसका भा ् शव ई! हक 11] पु ऋ्य्घडू | क्‌ उपनेडद > है । त्ात्द | अहुय- जछा धरजोसूद्िसुत्यु: । देसे के इसही उपानेषद की छठी जेक्का के अन्त में कहेगे ु और स्वयं 1 ज साकपण भाछिके साधनत्व करके रू गर जरधद उपब्पष ससह जो दहाल्त से वारंवएर ह्‌ नाशुकत्व करके ब्थात्‌ ज्लविद्य सी «८ उपनिषद विद | टी 2 री संवास इस होते त्‌ उनको शिथिरता प्रत्षकरदे 5 > इरके कही जाती.है सो भी पग असुतत्वे भजन्त? इत्यादि स्पदछ कहेंगे ॥ | उपनिषद्‌ शूब्दकरके पछ्े जानेवाले झन्‍्थ के से ८ उपनिपद्‌ » पढ़ताहों में ८ उपन्िषद- 21/८1£ 4॥ ७1 ्ध 011 च्क्यू ५8 «दर 4] ० रथ 4] 9) ५44 ञ्ज | कर 2 तल | / रा ला 724




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