वैदिक यज्ञ संस्था भाग - 2 | Vaidik Yagya Sanstha Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यज्ञसे जो चाहो प्राप्त कर लो । १७
३ जड ७३ को
भा यह ज्ञानतं हैं। हम इस पर व्याख्यान दे सकते हैं, मेरे जेसे इस
पर रूख लिख सकते हैं। परन्त इस यज्ञको करना इससे अपनी
कामनाये प्रा करना जरा विश्वास की अपेक्षा रखता हैं। जिसे
विश्वास हे कि संघशक्ति के बिना ये काम परे नहीं हो सकते वह
अवश्य इस यज्ञकों अवश्य करता हैं| उसी के विषय में कहा जा
सकता है कि वह इस तत्त्वकों जानता है । चाहे उसने भगवहीता
: को भी न पढा हो |
ज>-रूव ५
इस तत्त्व को जानते है हालेण्ड निवासी जो क मुट्ठी भर छोग
सम में समग्रकों अपने वांधांसे बांधते हुए अपनी सत्ता रखते
हूँ। अयनी स्वतंत्र उन्नति शील ओर स्वाभिमान सत्ता रखते है।
क्या अपनी यह इच्छा परी करना साधारण बात है ? इस तत्व
को जानते हैं थे थोडेसे इंग्लेण्ड निवासों जो कि सात समुद्र पार
एक छोटे से टापमें रहते हुए ३० करोड हिन्दुस्थानियोको
भैडों की तरह जिभर चाहते हू हांकते हैं इससे अधिक और अ-
संभव इच्छा क्या हो सकती है ? पर यज्ञ-संप्रशक्ति उन की यह
इच्छा भी परी करती है| इसमें किसी का क्या हैं; भगवान् कृष्ण
के शब्दों में कोई यज्ञका अनुष्ठान करेगा यज्ञ उसके सामने काम-
भरेन होकर खडा हो जावेगा और कहेगा कि / मुझ से जो चाहा
दह लो ” | भले ही यह लेख हिन्दुस्थानियों की पवित्र धर्म पुस्त
क में लिखा रखे, पर जो इसे करेगा फल तो उसे ही मिलेगा। यज्ञ
के बिना हिन्द स्थानियाकी स्वराज्य (अपना राज्य) होने की परम
स्वाभाविक इच्छा भी परी नहीं हो सकी ओर न पूरी होगी जब
तक कि हम ठीक ठीक यज्ञ करना न सीखेंगे । हमारी हालत तो
यह हैं कि वह यज्ञ जिससे कि स्व॒राज्य की इच्छा पूरा हो वह तो
दूर रहा, हमारे अभी छोटे छोटे मिलकर किये जानेके काय भी
नहीं चलते हैं | छोटासा यज्ञ भी हमसे निबाहा नहा जाता हैं।
क्
User Reviews
No Reviews | Add Yours...