अथ आख्यातिकः | Ath Vedangprakash Akhyatik Bhag-viii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
714
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र् भूमिका
ही करता है, और जो नहीं है. उसका द्वाता क्या, और जो नहीं
होता उसके करते का तो क्या ही- संभव है १ दूसरे विशेषार्थवाचरू
उन को कहते हैं कि लिनका प्रयोग विशेष व्यपद्दारों में किया जावे।
जैसते--देवदरः कि स्रोति ? स झृत-पचति, भुदक्ते, पठति, ददाति
वा इत्यादि । जैसे किसी से किसी ने पूछा कि दवदत्त क्या करता
है ९ बह उत्तर देता है--पकाता है, भोजन करता है, पढ़ता है
अथवा दान देता है ।
( प्रश्न ) आख्यात का कया लक्षण है ?
( उत्तर ) भावप्रघानमास्थातम् | जो धातु से परे लकारो के
स्थान में तिंदू आदि आदेश (किये जाते हैं थे भावप्रयान अर्पात भू
आदि धातुओं के सत्ता आदि श्र्थों क याचऊ होते हैं, उन्दी को
आशख्यात ब्ते हैं
( प्रश्न ) क्तिने अर्था में लकारों के स्थान में तिद आदि
आदेश होते है ? *
( उत्तर ) तीन अथाय् भाय, कर्म और कर्ता अर्थों' में । भाव
दो प्रकार का होता है एक आभ्यन्तर, दूसरा बाह्य | आध्यन्तर भाव
उस को पहते हैं. कि जो चालथेपात्र म सित होकर सामान्य अर्थ
का वाचक द्वीत है। जिसके एक हागे से एक ही वचन होता है
जैसे--आस्यते भयता भवदूभ्यां भर्वाद्धदी, आसितत्यम, भवित
वब्यम इत्यादि | इस में कद्गाप ठ्वितचन और बहुवचन का प्रयोग
हो सकता | और बाहयभाय उस को फहन हैं. कि जिस में एक,
दि भर बड़्वचन के प्रयोग होयें। रद्विद्दतोीं भातओ द्रब्ययद्ववात ।
गद्दाभाष्य अ० ३ । पा० १ । सू० ६७ | द्वव्यों के समांच इस के
अनेक प्रसार द्वोने स एक, दि आर यद्ववचनान््त श्रयोग द्वोते हैं।
जैसे --भार भागे, भ।याम पाक. पाक, पाक: शायादि 1
$ जिस ६१1१ ४
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