कुट्टनीमत काव्यम् | Kutnimatm Kavyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(उस बाराजसी में ममसिय को पघरौरबारिषौ शक्ति-कृप में मस्त
बेश्वाजों मे मूपण सी माछियी नाम की एक बारांमता निबास करतौ थी) |
माडतौ सर्बयुथसम्पप्ता बी परल्तु उसको इस बात का सोम था कि बहू
समुचित झूप से पर्याप्त सक्या में कामुक तदलणां को अपनी जोर ज्राकृष्ट
कर पाती । माछती ने सोचा कि क्यों श बह इस दिपम का सम्पूर्ण शान
बासौ बड़ा कुटमी विकराछा से छावर झपनी छकाआं का पमाषात करे और
प्रेमियों को आडृष्ट क्रमे बा उपाय पूछे। भाक्तती बिकराला के भर पई जौर
उसके साममे अपनी समस्पा रशी। उत्तर से बिकराष्ता ते बैप्तिक जीगत को
सफर शनाने के उपाया से माझती को अवगत कराया। कबि इज पुन प्त में
बिकराक्षा के मु हू से उदाहरणो और प्रमाथा से पृध्ट जो उपदेश बह्ठी
इस प्रथ का बर्म्प गिपय है। इसमे कोई सदेह पट्टी हि बिकराला ते मास्सी को
बैपिक लीबत को सफ़रू बमाने के किए जो उपाय बताये बे मनोबिज्ञात एव
परीर विज्ञान की दृष्टि से अस्पस्त पुष्ट और स्पप्ट बे । कबि दामोवर रज
तदृबिपयक प्रथी एब ऋषि-वाक्मों का बभीर अनुष्रीरूत दिया बा।
बिकरादछा इतती झुछरूतापूभक स्त्री पुरुप वे गौन-सम्बन्धो और बैपिक जीवन से
सम्बद्ध थारीक से बारीक प्रस्ता का उत्तर बे सकी। इस प्रबन्ध काष्प में काब्य
का विपय यद पि बैसिक जीवन ही है ठबापि प्रसगबदा संगीत मृत्य एब तादय
छुला पर मी सम्यक प्रकास पड़ा है। राम्य 2 9 प्तेतो दाद पुरा डी
सह रचना बत्यस्त उत्ृष्ट है ही ठत्काशीन जीबम पर भी प्रखर
प्रकाश पड़ता है जौर हमारी जातकारी इस सम्भन्ध में बद॒ती है। विकराश्ा जब
झपनता उपदेश समाप्त कर छेती है तो कमि का सबंममक्ताकाश्ी दंदय पवायक
अंक उठता है। उसे खगठा है कि अब ठग के रसरणपूर्थ बर्षत से दी पाठगमच
पयप्रप्ट न हो जायें औौर मे बेशिक जौबत के मोहक पाप्त म जाबड़ होते के स्तिए
शाम्रामित त हो उठें। दामोदर मृप्त को यही शपने कबि वर्म कौ याब जाती है
और अन्तिम इणोक में बहू रह उठते हैं--
काप्पमिर या शृचुते सम्पस्कास्पा्थपालतेतासौ।
सो बम्ध्यते कदाचिटिट्वेश्याधूतेकुट्ट्तौशिरिति॥
[एप काम्प को जो भ्यक्ित कास्पार्थ का सम्पक प्रकार से पाछन करहे हुमे
(रप्तले करते हुये) भ्रव्त करता है गह कभी मी गिट बेए्या धूर्त एवं छुट्टनसी
है पोधा गही लाता]।
| दल बास्पम् बास्प छौ दृष्टि से करपस्त उल्ृृप्ट रचना है। साथ
ह्ठी डामामिक जीवत के अध्ययन नौ कूंगी मी है। इसमे बथामों
एप बाओ एगं॑ अ्तेकबाओो का सहारा फैव र १ ने शास्त्रीय द॒प्टि से इस समस्या
पर विभार वाह और बिकराठा के मुख सै शिज्ञाद सम्मत उपदेश दिकूषाये
हैं। प्रप की स्वय॑सिदध है इसकी झोकप्रियता सिवियाद है।
के साव भापानुबाद एवं आवश्यक टीगा टिप्पणियों के कारथ हिन्दी
दाठकों कै लिए जी यह इंब बोपगग्य हा एया है। आशा है विश्व तमाज में
प्रस्तुत प्रंथ समाइत होगा।
--भीहृष्ण दास
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