जगमोहन रामायण | Jagmohan Ramayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : जगमोहन रामायण  - Jagmohan Ramayan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सन्तकवि बळरामदास - Santkavi Balramdaas

Add Infomation AboutSantkavi Balramdaas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
« (४) कवर्ग, चवर्ग आदि में वर्गीक्‌हण । फिर प्रत्येक वर्ग के अक्षरों का क्रम से एक ही संस्थान में थोड़ा-थोड़ा ऊपर उठाते हुए अनुनासिक तक पहुँचना, आदि-आदि ऐसे अनेक गुण हैं, जो अभा-रतीय लिपियों में एकत्र, पे नहीं मिलते। किन्तु ये गुण समान रूप से सभी भारतीय लिपियों में मौजूद है, अतः वे सब नागरी के समान ही विश्व की अन्य लिपियों की अपेक्षा 'सर्वाधिक वेज्ञानिक है। सव ब्राह्मी-लिपि से उद्भूत है। ताड़पत्र और भोजपत्न की लिखाई तथा देश- काल-पाव के अन्य प्रभावों के कारण विभिन्न भारतीय लिपियों के अक्षरों के रूप में यत्र-तत परिवर्तन, हिन्दी वाली 'नागरी लिपि' को कोई श्रेष्ठता प्रदान नहीं करता। भारत की मौलिक सव लिपियाँ 'नागरी लिपि' के समान ही श्रेष्ठ हैं। नागरी लिपि को 'भी' अपनाना श्रेयस्कर क्‍यों ? “तागरी लिपि” की केवल एक विशेषता है कि वह कमोबेश सारे देश में प्रविष् है, जबकि अन्य भारतीय लिपियाँ निजी क्षेत्रों तक सीमित है। वही यह भी सत्य है कि नागरी लिपि में प्रस्तुत हिन्दी (खड़ी बोली) का साहित्य, अन्य लिपियों में प्रस्तुत ज्ञानराशि की अपेक्षा कम और नवीनतर है। अत: समस्त भाषाओं की ज्ञानराशि को, सर्वाधिक फैली लिपि “नागरी” में अधिक से अधिक लिप्यन्तरित करके, क्षेत्रीय स्तर से उठाकर सबको सारे राष्ट्र में, यहाँ तक की विश्व में ले आना परम धर्म है। विश्व की सव भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान (सत्साहित्य) तो है आत्मा, और 'नागरी लिपि” होना चाहिए उसका पर्यटक शरीर । अन्य लिपियों को बनाये रखना भी क्तेव्य है। वस्तुत: यह परम धर्म है कि समस्त सदाचार साहित्य को नागरी में तत्परता से प्राचुय में लिप्यन्तरित करना। किन्तु साथ ही यह भी परम धर्म है कि देशी-विदेशी अन्य सभी लिपियों को उत्तरोत्तर उन्नति के साथ बरक़रार रखना। यह इसलिए कि सव का सव कभी लिप्यन्तरित नहीं हो सकता । अतः अन्य लिपियों के नष्ट होने और नागरी लिपि मात्र के ही रह जाने से विश्व की समस्त अ-लिप्यन्तरित ज्ञानराशि उसी प्रकार लुप्त-सुप्त होकर रह जायगी, जसे पाली, प्राकृत और अपश्रंश, सुरयानी आदि का वाडमय रह गया। जगत्‌ तो दूर राष्ट्र का ही प्राचीन आप्तज्ञान विलुप्त हो जायगा। तागरी लिपि वालों पर उत्तरदायित्व विशेष ! इन दोनों परम धर्मो की पूति का सर्वाधिक भार नागरी लिपि वालों पर है, इसलिए कि उनको 'सम्पक लिपि” का श्रेष्ठ आसन प्रदत्त है। मैं कह सकता हूँ कि उन्होने अपने कर्तव्य का, जैसा चाहिए था, वैसा निर्वाह नहीं किया | के प्रन्तु उसकी प्रतिक्रिया में अन्य लिपि वालों को भी “अपराध के जवाब में अपराध नहीं करना चाहिए। 'कोयला” बिहार का है अथवा वंगाल का है, इसलिए हम उसको नही लेंगे, तो वह हमारे ही लिए घातक होगा। कोयले की क्षति नही होगी। अपनी लिपियों को समुन्नत रखिए किन्तु नागरी लिपि को “भी' अवश्य अपनाइए। '




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now