चण्डीशतकम् | Chandishatakam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रास्ताविक परिचय महाकवि-वाण-रचित कादम्बरी, ह्षचरित, चण्डीशतक, शिवशतक श्रथवा शिवस्तुत्ति, मुकुटताडितक, शारदचन्द्रिका भ्नौर पार्वेतीपरिणय के उललख मिलते हैं। कादम्बरी कथा है, हर्षचरित श्राख्यायिका, चण्डीशतक और शिवस्तुत्ति दोनों स्तुति-काव्य हैं, मुकुटताडितक, शारदचन्द्रिका और पार्वती-परिणय नांटक हैं। इनमें से कुछ कृतियाँ उपलब्ध हैं, कुछ में से उद्धरण प्राप्त हैं और कुछ के नाममान्र सुने जाते हैं श्रथवा अन्य साहित्यकारों की रचनागश्रों में उनका संकेत-. भानत्र मिलता है । वस्तुत: काबम्बरी के साथ ही बाण का नाम अभिन्नरूप से जुड़ गया है। जिन लोगों म्रे इस कथा को पढ़ सुन कर उसका शआआस्वाद नहीं भी किया है वे भी इतना श्रवश्य जानते हैं कि वाणभट्ट श्रौर कादम्बरी, ये दोनों नाम श्रापस में श्रविच्छिन्न रूप से सम्बद्ध हैं; फिर, जिन रसज्ञों. ने इसका पान किया हैं उनका तो खाबा-पीना ही छूट जाता है, वे बाणाहत से होकर प्रत्येक पदक्रम पर कुरज्भचापल्य का प्रदर्शन करते हैं । निश्वय ही कादम्बरी बाणभट्ट की अन्तिम श्रौर प्रौद्तम रचना है। दुर्भाग्य से बाण स्वयं इसको पूरा नहीं कर सका और बीच हो में दिवंगत हो गया । उसके विनयी एवं श्राज्ञाकारी भुषण- भट्ट अथवा पुलिन्द-तामा पुत्र ने इसे पूर्ण किया ह “याते दिवं॑ पितरि तद्वचसव साध, विच्छेदमाप भुवि यस्तु कथाप्रवन्ध: | दुःख॑ सतां तदसमाप्तिकृतं विलोक्य, प्रारव्ध एवं स मया न कवित्वदर्पात्‌ ॥ कादम्बरी के सौधष्ठव ने भारतीय सांहित्य-रसिकों पर ऐसी छाप जमा दी कि बाणभट्ट की श्रन्य रचनाएं उनके लिए उपेक्षितप्राय. हो गईं। और तो क्या, हरषेंचरित भी, जो बाणभट्ट ही नहीं, संस्कृत-साहित्य के श्रन्य कविपुद्धवों के श्रस्तित्व के तिथि-निश्चितीकरण में दिहूनिर्देशक श्रुवे-नक्षत्र के समान है, एक... बार तो प्राय: भुलाया जा चुका था। काव्यप्रकाश और साहित्यदर्पण आदि में ही इसके इक्क्रे-दुक्के सन्दर्भ प्राप्त होते हैं । बाद के श्रनुशीलन से पाया गया कि श्रानन्दवर्धन, नमिसाधु श्रौर रुव्यक आदि ने भी अपने ग्रन्थों में महाकबि . वबाणभट्ट की इस कृति को सन्दर्भित किया है ।




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