पीड़ित चेहरों का मर्म | Peedit Cheharon Ka Marm

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Peedit Cheharon Ka Marm by मानिक बच्छावत - Maanik Bacchhavat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूखा सूखा है सब कुछ सूख गया है यहां चरमरा रहो हैं खेजड़ियां पेड़ों की रूह कांप रही है किसी बूढ़े रोगी को झुको कमर-सी लटक एई हैं डालें न जाने कब टूट गिरें चर्‌ चर्‌ करतीं 'फट गई है जमीन जगह-जगह जैसे वुभुक्षु के ओठों को 'पपड़ियां धूल के गुबार में सब कुछ रूखा, धुंधला और वीरान मटके नहीं डबडबाते कुओं-बाबड़ियों में नदी नंगी है उसके शरीर पर कोई वस्त्र नहीं पीड़ित चेहरों का मर्म/27




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