दमित आकांक्षाओं का गीत | Damit Aakankshaon Ka Geet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कमीज़ क्‍या बचा है अब इस कमीज़ में जो तीरे पर से फट चुकी है 'यह मरम्मत के काबिल नहीं रही कोई कमजोर कंधों और पतली टाँगों वाला दर्जी भी नहीं सिलेगा इसे परमाँ ! पुराने चश्मे से तलाशती है वह जगह जहाँ सीवन ठहर सके सुबह लड़के को स्कूल जाना है मैं मूर्ख इस फटी 'कमीज़ में तलाशता हूँ अपनी कविता मेरी कमीज़ की कंधों पर मरम्मत एक अर्से से नहीं हुई। द्त




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