हादसाते - हयात | Hadasate - Hayat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ 5 1]
ज्यो-त्यों कर दिन बीत गया है-
रात मगर घिर झाई है।
भीड में गुम रहता हु दिन भर-
रात मे फिर तनहाई है।
सुरज श्राग उगलेता दिन भर-
रात में ठडक छाई है।
अलल-सुबह तो घृूप खिली थी-
शाम मगर घुधघलाई है।
दिन भर जिसके पीछे दौडा-
रात मे इक परछाई है।
रोक-टोक दिन होने तक है-
रात मगर पगलाई है।
मुर्गे की कुकड-कू सुनकर-
रातरानी कुम्हतलाई है ।
जान कही अनजान! न ले ले-
दर्द ने ली भगडाई है।
कक
हादसाते-हयीत/21
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