हादसाते - हयात | Hadasate - Hayat

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Hadasate - Hayat by निसार अहमद - Nisar Ahamad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ 5 1] ज्यो-त्यों कर दिन बीत गया है- रात मगर घिर झाई है। भीड में गुम रहता हु दिन भर- रात मे फिर तनहाई है। सुरज श्राग उगलेता दिन भर- रात में ठडक छाई है। अलल-सुबह तो घृूप खिली थी- शाम मगर घुधघलाई है। दिन भर जिसके पीछे दौडा- रात मे इक परछाई है। रोक-टोक दिन होने तक है- रात मगर पगलाई है। मुर्गे की कुकड-कू सुनकर- रातरानी कुम्हतलाई है । जान कही अनजान! न ले ले- दर्द ने ली भगडाई है। कक हादसाते-हयीत/21




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