ज्ञान पञ्चमी सुव्रत विधि | Gyan Panchami Suvrat Vidhi

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Gyan Panchami Suvrat Vidhi by ज्ञानश्री जी महाराज - Gyanshri Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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> ह# झ्ान-पंचमो-उतू-वाघ # र्र्‌ पिनय फरे जे गुरू नो यह परेनी तेहने अत सुणता वह फल होय हो । ते रपिया मन चमिया विनयचन्द्र ने जी, मो माहे मिले ज्ोया एक के ढाय हो ॥म्ह ०॥»॥ #& पपासक-दशा सूत्र सज्काय # ( गाग-पिडिया ने! ) व्‌ सातमो अग से सॉमली, उपासके दणा नामे चग र२। मणीपासकनी चर्णना, जसु चन्द पन्नति उपाग रे ॥शा ने लागो मोरो सत्र थी, एतो भय्र वराग तरण २। रुप राता जता गुण लदे,... | परमारथ सुविहित सभ रे ॥मन०॥२॥ ए श्रगे सुययन्ध एक छे, अध्ययन उत श गिचार रे | दस ठस सरयायें दासव्या, पट पण सरयात हजार र॑ ॥ सन ०॥३॥ ग़नन्दादिक श्रपक तणो, सुगता अधिकार रमाल र। रस लागे जाएंगे मोहनी, / आता जन ने ततकाल रे ॥ मनत॥ए॥ ग्ेता आगल दो बाँचतों, गीतारथ पामे रीक गरे। ज॑ अईदण्घ ममके नहों, तेह ख्‌ तो करपी घीज रे ॥ मन वश [स भ्रावक्क ता इहा भाषिया, पिण सत्र मेएयां नहीं कोय रे ।




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