गोधूलि | Godhuli

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Godhuli by आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुबिन्ता दे यान गरम हो उठे । वह खाल हो गयी। बोती--हम लोग अपमे मे बड़ों वी इस तरह वी आलोचना कमी नही करते थे नीवा 1 पर नीता अविचलित मुद्रा में दोती--कयों नहीं करती थीं ? प्यार एव भयंत र गोपनीय चीज है, ऐसा समझने वीं कया जरूरत है ? अगर आपके सड़के यह जान ही जाएँ कि जिन्दगी में आपने कमी किसी से प्यार किया था ती यदि वे बापके प्रति श्रदधाशीतल और मसहानुमूतिशीन हैं तो अवध्य ही वे आपने: मन के सूनपन की समझ सकेंगे । +-पयही एक जगह है नीता जहाँ पति या परत्॒ रह्यनुशृत्िशील नहीं होते। हो ही नहीं सकते । “अभ्यास का अभाय है । दृष्टिकोग में परिवर्तन लाना पड़ेगा। ओर ग्रह परिवर्तन हम लोगों को ही ताता पड़ेगा। मैं सिर्फ इसी एक विश्वेप परिस्यिति के लिए गही कह रही हूँ बुआ। मैं सके लिए कह रही हूँ । मैं यद वात मन से मानती हैँ, तमी तो हिम्मत करके आपके पास आ सकी हूँ। जानती हूँ प्यार की शवित से बहुत छुछ संभव है । उस शक्ति के बल पर आप बहुत चीजों को तुच्ठ सनप्त सकेगी और एक आदमी को बरवादी और विलुप्ति के रास्ते गे लौटा सकेगी । यह मेरी म्रापके पास नहीं, मानवता के समक्ष प्रार्यंन्रा है। रोगी ठी सेवा सनझ कर ही उसे थोटा-सा स्नेह और ममना वी खुराक देनी होगी । आपको तो कोशिश भी नही करनी पड़ेगी 1 अमिनय भी नही करना होगा । सुचिस्ता हताथ होकर बोची--मुझे कोशिश नहीं करनी पड़ेगी, अपने को तैयार नही करना होगा, यह खर नुम्हें कैसे मिली--मुझ्े यही नहीं समझ्न में आता । --+मैं आपको हमेशा से झानती हैं बुआ | पिताजी के गहन एवात मे रखी आपकी तस्वीर मने देखी है। आपका पता और आपके नाम का भरा हुआ पता, आपके नए मझान का पत्ता 1 सुथिन्ता अब मानो झर्माना भी भूल देठी थी। अश्रुतपुर्व इस कहानी ने उत्त विभोर-विकल बना दिया था। नीता फिर बोलो--ऐसे तो पिताजी वहुत अनमने हैं। घर में हर जगह मेरा ही हस्तक्षेप होता रहता है । पर उनके मन की निर्जवता




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