मेधाजनन संगठन और विजय भाग - 5 | Medhajanan Sangathan Aur Vijay Bhag - 5

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Medhajanan Sangathan Aur Vijay Bhag - 5 by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

Add Infomation AboutShripad Damodar Satwalekar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सिपयामुक्रमणिका (५) 1 प्र्ध्च विषय चृष्ठ प्रतिसर मणि <रे अपमृत्युक्षो हटानेका उपाय ११६ मणिषारण डरे ओदवधि आदियोंका इहाचय श्श्दृ 7 एक शाका दर पशुपक्षीयोंका ब्रह्मचर्य ११७ दारीरकी रचना ( कां ११, पू. ८ ) <२ देवोंका तेज श्र शरीरकी रचना <९ उपदेशका अधिकारों ११७ शरीरको रचना और योग्यता < | ब्रक्मोदन (का ११, सू १) ११८ बड़ी गौ-शाला-विश्व-विराट <९ अद्योदन श्र छोदी गोशाला-देह ९० ज्ञान बढ़ानेवाला अप्त श्श्६्‌ अंज़न ( को ४, हू ९) ९० शत्रुओंको परास्‍त्त करता ११६ अंजन ९१ श्रपुत्रा स्त्री १२७ पाशांसे मुक्तता ( का. ६, सू- ११२) श्र स्त्रियोंका कर्ंष्य श्श्क दो देवॉका सद्दवास ( का ७, सू. २९ ) ९४8 विवाह श्श्८ दो देवोका सहचास ९8 भृहराज श्श्ट प्रहयये ( का ११,सू ५) ९१ पोषक अन्न श्श्९ु प्रह्मचर्य १०१ धर कंसा हो ? श्र९ देवताओंकी अनुकूलता १०१ | स्वर्ग कौर ओदन (का, १२, पू ३) १९९ वेबताओंका साम्राम्प १०२ स्वर्ग और ओदन १०७३ त्रिलोकीका कोष्टक १०४ स्वर्गका साम्राण्य १४३ तोन और ठोस देव १०५ बलफा भहस्व १8३ गुदशिष्य-सबध १०७ एकताका संदेश १४४ तोम रातिका विवास १०७ |. चारों दिशाओंमे हलचल १४४ अ्रमाका तत्वन्ञान श्ग्द ऊख्ल आदि मूसल १8५ मुत्युकों स्वोकार करनेफो तैयारी १०९ पशुपालन श्ष्प तपसे उन्नति ११० | शृहब्पव स्पा १४३ ब्रह्मघारीकी हलचल श्ह्ृ पकातेका कार्य श्ह्व अह्मयचारीकी मिक्षा श्श्श जलका महत्त्व श्ध्३ बअह्मघारोका आरमपत्ञ श्शश च्ाकृभाजी १४६ दो कोश ११३ पकनेपर १४५ कोशरक्षक ब्रह्मचारी ११३ कुटबमें एकता १४६ दो झत्ति ११३ डदेवनिदककों दूर करो १8६३ ऊध्यरेता मेष ओर ब्रह्मचारो २१३ परमरेष्ठी प्रभापति १8३ बड़े प्रह्मतारीका कार्य श्श्३ आदर्श पृहस्पाभम १8७ छोटे ब्रद्मचारोक्ा कार्य ११३ विराद अन्न ( कां ११ घृ. ३) श्षट८ट आघार्यका स्वरूप श्द्छ पिरागू अन्न १५७ आदर राज्यशासन श्श्द अध्वका महत्त्व श्ष्छ अहाचरंसे राष्ट्रकः सरक्षण ११३ इृदयके दो गिद्ध (रा ७, सू १५) श्ष्ट एन्याओंका ब्रह्मर्य ११६ हछुष्णाका वि ( का. ७, मू ११३) श्ष्रु वशुमोक्त बहमवर्य ११६ अप्रायास्या (रॉ ७ पृ. ७९ ) १६०




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now