ब्रह्मा पुराण [खण्ड 1] | Brahma Purana [Khand 1]

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Brahma Purana [Khand 1]  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५») घणित सह्यनिष्ठा,त्यागनिष्ठा,बद्रोह-निष्ठा के “प्रतिपादक हरिश्रन्द्र” शब्द “च्यवन” आदि के कथानको का मनन करते हुये जीवन में सत्य एवं करुणा का सचार तत्काल होने लगता है । अत. “सत्यवद धर्मंचर” जैसे सूत्र रूप बेद घावयों का भावार्थ समझाने का प्रयास वेदव्यास जी ते (ईुराण ग्रन्थों मे किया है (! इसमे सन्देह नहीं कि सामान्य जनसमुदाय में घामिक तत्वों की जानकारी तथा उनका प्रसार होने के लिये कथा-ग्रन्थो का पठन-पाठन आवश्यक और उपयोगी है 1 मध्यकाल में एक प्रकार स बेदो का लोप ही हो गया था ओर उनके जानने वाले उंगलियों पर ग्रिनने लायक रह्‌ जये थे, फिर भी महाभारत, रामायण और विविध पुराणों की कथाओं और उनके आधार पर लिखे गये घामिक आख्यानो की पुस्तको ने जनता की धमंनिष्ठा को स्थिर रखा | यद्यपि उस समय वेदो का दर्शन होता भी कठिन हो गया था, तथापि पुराणों मे उनकी ऊर्चा सुनकर ही लोग उनके प्रति श्रद्धा बसाये रहे। पुराणों में सत्यनिष्ठा के सम्बन्ध मे महाराज हरिश्वन्द्र का उप/ख्यान, पतिब्रत की निष्ठा के लिये सुकन्या भर साविधी का उपग्ख्यात, पितृभक्ति के लिये भीष्म पितामह का उपाख्यान पढ़ सुन कर लोग धमं-मार्थं की भाववा को ग्रहण करते रहते थे । रामायण को कथा सुनकर लोग अनुभव करते थे कि किस प्रकार राम ने पिता के धचनो की रक्षा के लिये राज्य-त्याग कर दिया, अन्याय ओर धुराचार का अन्त करने के लिये रावण जंसे महाबली स्रम्राट्‌ से सधर्प किया, जनमत का आदर करने के लिये अपनी परम प्रिय पत्नी का त्याग कर दिया । इन कथाओ का प्रभाव जन जीवन पर वहुत अधिक पडता था और बहुसब्यक लोग ऐसे मदामानवों के चरित्र को आदर्श मानकर उनसे शिक्षा ग्रहण करते थे 1 हम इससे भी इन्कार नही करते कि वर्तमान समय मे पुराणों का जो स्वरूप दिखाई पड़ता है वह “मूल रूप से बहुव बढा हुआ मौंर भिन्न भी है। पुराणो मे ही जगह-जगह यह क्यन आता है कि आरम्भ




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