संस्कृत - पाठ - माला भाग - 24 | Sanskrit Path Mala Bhag - 24

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१० ) पाठ ६ के इृद कस्मा अदात्‌.कामः कामायादात्‌ । कामा दाता कामः पातितन्रहाता काम समुद्रमा विवेश । कामेन त्वा प्रतिय॒ह्वामि कामेतत्ते॥. ( क्ष० ३1२९।७ ) ( कः ) किसने ( इ॒दं ) यह ( कस्मे ) किसको ( लदात्‌ ) दिया है ! ( कामः कासाय अदात्‌ ) इच्छाने इच्छाको दिया है। (कामः दाता ) इच्छा ही दाता है भोर ( कामः प्रति अद्दीवा ) इच्छा ही छेनेवाला हे । ( काम: ससुद्रे आाविवेश ) इच्छा दी सझुद्वमें प्रवेश करती दे। दे ( काम ) इच्छे | ( कासेन त्वा प्रति गृह्लामि ) इच्छासे ही में तेरा स्वीकार करता हूं । क्योंकि ( एतव्‌ ते ) यद्द सब तेरा ही है । इच्छा ही सद कुछ कर रही है और करा रही है | दाता भझोर लेनेवारूा! इच्छाके कारण ही द्वोते हैं । कई समुद्रयात्रा करते हें ोर कई दूसरी जगद जाते हैं, सब इृच्छाके कारण ही है। हस प्रकार सब सृष्टि काम भर्थाव्‌ इच्छासे दी चल रही है । कामस्तदओ समवतेत मनलो रेतः प्रथम यदासीत्‌ स काम कामे बृहता सयोनी रायस्पो्ष यज़ञमानाय थेष्टि ॥ ( क्ष० २९।५२६१ ) ( अष्रे ) प्रारममें ( कासः ) इच्छा ( समवतेत ) थी। कामना थी । जो मनका ( प्रथम रेतः ) पद्दिका वीये ( भासीत्‌ ) था। दे काम ( सः ) वद्द तू ( बृद्दता कामेन ) बढ़ी कामनाके राथ ( सयोनि: ) एक स्थानमें उत्पख ( रायः पोष ) घनकी पुष्टी ( यज्ममानाय ) सत्कम करनेवाछेके लिये ( फट ) धारण कर । भनका पहिला वीये इच्छाज्षाक्ते भर्थाव्‌ काम है । जगतके प्रारंभमें यद्दी इच्छाशक्ति थी। इसकी प्रेरणासे जगत्‌ उत्पन्न छुआ। मसुष्य इसी इच्छा- शक्तिको कार्यमें छूकर भपनी यथोचित उन्नति सिद्ध करे ।




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