संस्कृत - पाठ - माला भाग - 24 | Sanskrit Path Mala Bhag - 24
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१० )
पाठ ६
के इृद कस्मा अदात्.कामः कामायादात् ।
कामा दाता कामः पातितन्रहाता काम समुद्रमा विवेश ।
कामेन त्वा प्रतिय॒ह्वामि कामेतत्ते॥. ( क्ष० ३1२९।७ )
( कः ) किसने ( इ॒दं ) यह ( कस्मे ) किसको ( लदात् ) दिया है !
( कामः कासाय अदात् ) इच्छाने इच्छाको दिया है। (कामः दाता )
इच्छा ही दाता है भोर ( कामः प्रति अद्दीवा ) इच्छा ही छेनेवाला हे ।
( काम: ससुद्रे आाविवेश ) इच्छा दी सझुद्वमें प्रवेश करती दे। दे ( काम )
इच्छे | ( कासेन त्वा प्रति गृह्लामि ) इच्छासे ही में तेरा स्वीकार करता
हूं । क्योंकि ( एतव् ते ) यद्द सब तेरा ही है ।
इच्छा ही सद कुछ कर रही है और करा रही है | दाता भझोर लेनेवारूा!
इच्छाके कारण ही द्वोते हैं । कई समुद्रयात्रा करते हें ोर कई दूसरी जगद
जाते हैं, सब इृच्छाके कारण ही है। हस प्रकार सब सृष्टि काम भर्थाव्
इच्छासे दी चल रही है ।
कामस्तदओ समवतेत मनलो रेतः प्रथम यदासीत्
स काम कामे बृहता सयोनी रायस्पो्ष यज़ञमानाय थेष्टि ॥
( क्ष० २९।५२६१ )
( अष्रे ) प्रारममें ( कासः ) इच्छा ( समवतेत ) थी। कामना थी ।
जो मनका ( प्रथम रेतः ) पद्दिका वीये ( भासीत् ) था। दे काम ( सः )
वद्द तू ( बृद्दता कामेन ) बढ़ी कामनाके राथ ( सयोनि: ) एक स्थानमें
उत्पख ( रायः पोष ) घनकी पुष्टी ( यज्ममानाय ) सत्कम करनेवाछेके लिये
( फट ) धारण कर ।
भनका पहिला वीये इच्छाज्षाक्ते भर्थाव् काम है । जगतके प्रारंभमें यद्दी
इच्छाशक्ति थी। इसकी प्रेरणासे जगत् उत्पन्न छुआ। मसुष्य इसी इच्छा-
शक्तिको कार्यमें छूकर भपनी यथोचित उन्नति सिद्ध करे ।
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