वैदिक चिकित्सा | Vaidik Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) (१) दिव्य वैद्य ६ यत्नौपधीः समय्मते राजुनः सामितामिवा विप्रः स डच्यते भिषय रक्षोद्याउ्मीवच्चातनः ॥ ( क्र. १०९७६ ) अर्थ- एजेस प्रकार राजा छोग अथवा क्षात्रिय (प्॒प्तितां इव ) सभामें एकद्रित होवे हैं, उस प्रकार ( यत्र ) जद्दां भौषधिया ( से धग्मत ) इकट्टी द्ोतीं. है उस ( वि-प्रः ) विशेष ज्ञानी मलुष्यको दी ( भिषक्‌ ) वैध कद्दते हैं। बद दी (रक्षो-दा) राक्षतरोंका हनन करनेवाला और (अमीव- 'वातनः ) रोग दूर करनेवाढा कहा जाता है। < इस मंश्रमें दैद्वका लक्षण बठाया है--(१) संपुर्ण क्षौपधियां लपने दास ठीक प्रकार रखनेवारा, (१) विशेष ग्रदुद्ध अयोद्‌ अपने शाख्रका सागोपोंग जिसने क्षष्ययन किया है, (३) जो युक्ति क्षौर योजनासे ( भिपज्यति ) रोग दूर कर सकता है, (४) जो राक्षस्तोंका नाश कर सकता है छोर (७) जो रोगोंको मूलसे छ्ग्ांद जडले (चातनः) डखाड देता दै। ये दैद्यके पांच लक्षण उक्त मंत्रमें कदे हैं।“* राक्षसों ” के विषयमें इतना ही यद्वां कटना दे, कि 'रक्ष', राक्षस, असुर” भादि शब्द विशेष कर्थमें वेधशास्में प्रयुक्त दोते हैं। ये सजीव प्राणघारी सूक्ष्म कीरजीव हैं कि जो मजुष्यके आंखोंले भी दिखाई नहीं देते! शहठपयथ्में इनके दिपयमें दद्वा है कि--- ठद्वघुनोति | अवधूत रद्दः। अवधूता अरात॒यः इति; तन्नाप्दा एवेतद्रक्षास्यतोडपद्द नित 0 (शत्त. व्रा १1१४ ) बह चमेको झटक देता दे भौर कहता है कि राष्षसोंदा नाश डोगया, कसुरोंका चाश हुला। इस प्रकार विनाशक राक्षप्रोंका सेहार द्ोता है ६?




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