महाभारत आदिपर्व | Mahbharat Aadiparv

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Mahbharat Aadiparv by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) 2 आर (292 ५१४४२६ इस अपूर्द अंथर्में किन किन[विषयोंका वष्ीनःहैं,-इस “वें , स्वये ग्रेथकारका कथन द्रष्टव्य हं--/ कृत मयेदू भगवन्‌ काव्य पस्मपूजितम्‌ 1 ब्रह्मन्वेद्रहस्यं च यज्चान्यत्‌ स्थापित मया । मोपनिपदां चैंत वेदानां विस्तरक्रिया ॥ इतिहालपुराणानाझुन्मेष निर्भिते च यत्‌ । भूर्त भव्यं मविष्यं च त्रिविध कालसंज्ितम्‌ ॥ जरासृत्युभयव्याधिमावाभावविनिश्चयम्‌ । विविधस्य च धर्मस्य ह्याश्नयाणां च छक्षणम्‌ ॥ चातुर्व॑ण्य॑विधानं च पुराणानां च सबंशः । तपसो ब्ह्मचर्यस्य पृथिव्याश्वन्द्रसूयंयोः: ॥ ग्रहलक्षत्रताराणां प्रमाण च युगेः सह । ऋचो यजूँपि सामानि वेदाध्यात्मं तथेव च ॥ न्‍्यायः शिक्षा चिकित्ता च दाने पाशुपते तथा । हेतुनेव सम जन्म विव्यमाुपर्संशितस्‌ ॥ तीथोनां चैच पुण्यानां दिशानां चेच कीतेनम्‌। नदीनां पर्वतानां च वनानां सागरस्य च ॥ पुराणां चैव दिव्यानां कब्पानां युद्धकोशलम। वाक्यजातिविशेषाश्च छोकवात्राक्रमश्च यः ॥ यज्यापि सर्व चस्तु तच्चैच भतिपादितम्‌ ॥ ३ ४ मैंने इस भारतरूपी क्षपूव काव्यकी रचना की है। इससे निम्न लिखित विपषयोका समावेश द्वोता हे- वेदोंका रहस्य, उपनिषदोका ततच्वज्ञान, क्षग-उर्पागोंकी व्याख्या, इतिहास जोर पुराणका विकास, त्रिकालका निरुपण, जरा- रुत्यु, भय, ब्याधि, भाव क्षमावका विचार, ज्रिविध चरम और क्षाश्रमका विवेचन, वर्णयम शावि। व्यासके इस कथनसे प्रतीत द्ोता है कि सद्दाभारतकों रचनेसें ब्यासका डद्देहय राजाओोंक इतिद्यासका वर्णन करना नहीं था, छपितु मनोरंजक कथाके साध्यससे छोगोंको घसम समझाना दी था| व्यासका यह निश्चित सत था कि यदि छोग घर्मका शाचरण करें, तो मनुप्योंको अथ, काम भौर सोक्षकी प्राप्ति भासाचीसे दी सकती है--- ऊरध्ववाहु: विरोग्येप न च कश्चिच्छणोति माम । ः चर्मादर्थश्न फामश्थ ख धर्म: कि न सेव्यते ॥ भूमिका जता ज+++४४++++४“+“““““ “““““ अदकिल जलती लत ४८६६ में हाथ उठा उठाकर चिछा रहा हूँ, पर कोई भी मेरी बाद न सुनता, धमसे ह्वी क्षण कौर कामकी प्राप्ति होती है, फिर धमेका ही काचरण क्यों न किया ज्ञाएु ? उपर्थुक्त छोकके उत्तराघेसे मद्याभारत रचनाका ब्यासका उद्देश्य स्पष्ट द्वोता जाता है। मद्दाभारतके द्वारा वे एक ऐसे कृष्णका वर्णन करना चाइते थे, जो “ पएरित्राणाय खाधूनां विनाशाय च दुष्कृतां धमसंस्थापन्नाथोय |” इस संसारमें बार बार जन्म लेना चाद्वता द्वो, वे ऐसे युधिष्टिरका वर्षन करता चाहते थे, जो धर्मकी रक्षाके लिए. कठिनसे कठिन संकर्टोंकों मी झेल सके | इस पकार--- (+$ ) मद्याभारत एक अपूर्व काव्य अन्थ है । (२) कीरव-पाण्डवोंके इतिद्यासके विविध शास्त्रोंका वर्णन है । (३ ) सद्दाभारतकालसें विद्यमान शास्त्रोंका संग्रह इस दाभारतसें किया गया है । इस प्रकार यद्द ग्रंथ बस्तुतः एक विश्वकोश है | श्रीसागव- तमें स्पष्ट क(। है क्वि- “ सारतके माध्यमसे व्यासने वेदोंका अर्थ ही प्रदर्शित किया है| ” “स्त्री, झद्र और मूख ट्विज श्षत्तिका क्षथ नहीं समझ सकते, इसलिए इन्हें श्रेय/ प्राप्तिका मार्ग वतानेके लिए व्यासने सद्दाभारतकी रचना की |” ६ यह मद्दाभारत ज्ञानी लोगोंके लिए शेजनकी एक शलाका है, जिसे जांखोंसें रयगाकर क्षज्ञानी भी हर तरहसे ज्ञानवान्‌ द्वो जाता हे । महामारतकी यह प्रशसा कोई अत्युक्ति नहीं है। इन्हीं विशषताणोंके कारण महामारतको पांचवा बंद कहा गया है। इतिहास है कि पूबकारसें देवतानोंने तराजूकी एक तरफ चारों वेदोंको क्षौर दूसरी तरफ केवल महाभारतको रखकर तोला, तो मद्दाभारत ही वज्ननदार निकला। वस्तुतः इसका तात्पयय यह नहीं कि तत्त्वज्ञानसें मद्दाभारत चेदसे वढ़ चढकर है | इसका तात्पय यही है कि वेदिकतस्वज्ञानको दी भद्दाभारतसें इस रूपसें प्रस्तुत किया गया है, कि सर्वे लाधारणके लिए क्षासान हो गया । वेदोंके द्वारा त्वज्ञानको समझना दरएकके वृत्तेकी बात नहीं है, पर उसी तत्वज्ञानको महाभारतकी कथाके माध्यमसे मलुप्य माध्यमसे डसमसें वन म लत लत लभ लिन ना कडतपन तल य०न न रन सरल नम पदकप<5 2.10 5 10.5. 5.5 | मद्दासारत शादिपवे १1६१-६९ ४ भारादद १. ४. २८, २०.




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