जीवन मरण रहस्य | Jeevan Maran Rahasya

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Jeevan Maran Rahasya by ठाकुर नारायण सिंह - Thakur Narayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उद्देशों के पूर्तिकतो २५ कोमल-से-कोमल रेशे तक, दात की हड्डी से लेकर आदर मिल्‍्ली के अत्य'त कोमल भागो तक सब इन्हीं देहाणुओ से बन हैं। इन देहागुओं की भिन्न-भिन्न शक्लें होती हैं, जो इनके विशेष उद्देशों तथा क्रियाओ के अनुकूल होती है। प्रत्येक देहारु॒ सब प्रकार से प्थक्‌-प्रथक व्यक्ति होते हैं, परंतु ये चेतन्य देहागु अपने अफसर देहाएु-समृह के चेतनन्‍्य मानस के वशवर्ती होते हैं । जेसे व्यक्तिगत देहाणु देहाणुन्समूह के मानस का वशवर्ती द्ोता है, पेसे ही छोटा देहारु-समूह-मानस बड़े देहाएु-समूह- मानस मे रहता है। और, अंत भे मनुष्य को केंद्रस्थ मन सबके ऊपर शासन रखता है। मनुष्य के इस केंद्ररथ मन को, जो शरोर के सब देहाणु-समूहो के मानस पर शासन रखता हैः प्रवृत्तिमानस ( 175970 ) कहते है। ये नन्‍ह-ननन्‍्ह देहा यु सर्वदा काम मे लगे _रहते हैं। शरीर के सब क॒तंव्यो का पालन करते है। प्रत्यक के ज़िम्से अलग- अल्नग“कार्म होता है, जिसे वे अपने योग्यदानुसार पूरा करते रहते हैं। कुछ देहाणु फालतू रहते हैं, जो आज्ञा की प्रतीक्षा किया करते हैं, और अकष्मात्‌ जो कार्य आ जाय, उसे करने के ल्लिये तेयार रहते है। अन्य देहाएु क्रियाशीत या कामकाजी होते हैं और नाना प्रकार के द्रबों और तेज़ाबों को बनाया करते है, जिनकी आवश्यकता देह की मिन्न क्रियाओ से पड़ा करती है । कुछ देहारु एक स्थानीय होते हैं, जो.दूसरे आज्ञा की प्रतीक्षा मे स्थायी रहते है, पर आज्ञा




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