दश वैकालिकसूत्रम् | Dasvekaliaksutram Chaturth Ratnam

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Dasvekaliaksutram Chaturth Ratnam by पूज्य आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज - Poojya Aacharya Shri Aatmaraamji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४] दशवैकालिकसूत्रम- [ भ्रस्तावना अिकमीकटीमाननगापनमन७पकरी जम चलन. चित स+मकनल्‍न०- उमा सम पजनी ९ज-न्‍ अत हब रजत भा नही चर चढत सी चत ऋरी सती वा फनी जी. जा जरी. जी समर परी सनी री सती फनी न्‍नी जा री जी ही जरिमरमीएनमनजर जा न्‍ी परी पी पन्‍ चर चर. जग यद्यपि यद्द सूत्र मुख्यतः भुनिधर्मेप्ररूपक है, तथापि ग्रहस्थों को भी बहुत छाभप्रद है । इसके पठन से ग्रृहस्थ भी बहुत कुछ आत्मोद्धार कर सकते हैं । यह सूत्र किसने क्यों और कब बनाया ? इस सूत्र के निर्माता श्री शय्यंभव आचाये है यद्द जाति के ज्राक्षण और बढ़े भारी दिग्गज बिह्ान्‌ थे । इनकी जन्म भूमि सगध दैश की असिद्ध राजधानी राजणूह है । यद्द अपने द्रव्य से एक विशाल यज्ञ कर रहे थे कि श्री जम्वू स्वामी जी के पट्ंघर श्री प्रभव खामी के उपदेश से संसार का परित्याग कर मुनि दो गये। श्रीप्रभवस्तामी के बाद यह पट्टधर आचाये हुए । जब थह् भुनि हुए तब इनकी सत्री गर्भेवती थी, बाद मे उसके पुत्र हुआ, जिसका नाम मनक रक्‍्खा गया । सम्भवतः दश ग्यारद्द वषे की अबस्था मे यह मनक पुत्र अपनी माता से पूछ कर चूपा नगरी में अपने संसारी पिता भीशय्यंभवाचाये जी से मिछा और परिचय के पग्मातू उनका शिष्य हो गया । आचार्य श्री ने ज्ञान बल से देशा, तो उस समय मनक की आयु केषछ छः मद्दीने की शेष रद्दी थी । तब, चारित्र की आराधना कराने के बास्ते श्री शय्यंभवाचार्य जी ने पूर्बश्ुत मे से, संक्षिप्त रूप से, इस वृशबैकालिक सूत्र का उद्धार किया | इस सूत्र के अध्ययन से मनक ने छः मास मे ही खकाये फी सिद्धि की | इस सूत्र की रचना आज से करीब तेईससौ बे से कुछ ऊपर पहले हुई है । अर्थात्‌ भगवान्‌ महावीर के निर्वाण से ७५वें वषे से ९८वें ब्ष के मध्य मे यह सूत्र बनाया गया हे, क्‍योंकि इस समय मे श्री श्यंभवाचान जी आचाये पद पर प्रतिष्ठित थे और संघ का संचाक्न कर रहे थे, इसी बोच की यह घटना है । ऐतिहासिक शोध के अजुसार दशवैकालिक का रचना काल, स्पष्टतया चीर संवत्‌ ७५ के छग भग ठद्दरता है । श्री शय्यंभवाचाये जी का खरीबास वीर संबत्‌ ९८वे मे हुआ था, अर्थात्‌ आज से संभवतः तेईससौ ६७ वर्ष पूवे | अब बीर संबत्‌ २४६६ चालू है । इतने सुदीधे समय से आज तक, इस सूत्र का ऊगभग़ रंघ मे पठन पाठन दोता चछा आरहा है । इसी से इस सूत्र फी महत्ता प्रमाणित होती है । उपयुक्त वक्तव्य के लिये पाठकों को प्रमाणस्वरूप, कल्प सूत्र की सुबोधिनी व्याख्या का यद्द अंश देखना चाहिये-...




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