सत्याग्रहगीता | Satyagrahgeeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्रयमोष्च्यायः *
बिनीततमवेषो5्सों विलासबिर्तान्तरः |
निधनान् महता दैन्येनातिशेते निजेच्छया ॥ ११ ॥
(११ ) अतिविनीत वेशयाठा, विछाससे विरक्त सनवाला और
अपनी इच्छासे ही महान निर्धनताको स्वीकार करते हुए यह निर्धनोसि
भी बदुरर है।
श्षुत्पिपासामिभूतेपु ग्रामीणननकीटिप ।
अस्पान्नेन निज देहमस्थिशेष॑ चक्ार सः ॥ १२ ॥
(१२) गांवफ करोड़ों छोगोंके भूख ओऔर प्याससे अभिमृत
होनेके कारण उसने थोटा अन्न खाकर जपना शरीर केवछ हड्डीपसलीकी
अवस्थाको पहुंचा दिया।
पुरा क्रिलाफ़िकासण्ड मारतीया हि केचन |
वाणिज्यव्यवसायार्थमगच्छनू परिवारिण: ॥ १३ ॥)
(१३ ) पुरातन समये कईं एक भारतीय जन व्यापारके लिए
परिवारसद्वित आक्रिका देशमें गए थे!
अथ गच्छत्सु वर्षपु पीडितास्ते निवासिमिः ।
चोरादिमिः सुगौराह्ः कृष्णवर्णदुराग्रहे! ॥ १४ ॥
(१४ ) कुछ साऊ वीतनेपर गोरे र्वाठै, काले र्के साथ दुरामरइ
करनेवाले वहीं रहनेवाले बोरादि जातियोंद्वारा उन्हें पीढा होने छग्ी।
, पह्चयान्मोश्वमिच्छन्तों न््यायघर्मविशारदम्।
महात्मानमयाचन्त साहाय्ये परम जनाः || १५॥
(१५) उनके मयसे मुक्ति प्राप्त करनेके छिए उन भारतीयोंने
न्यायघर्ममें पारंगठ महास्मासे सदायता सांगी ।
कैशातानां पर मित्रं सत्यवाय गाग्थिवेशनः ।
चान्धवानां विमेक्षार्थभाफ्रिकादेशमत्रजत् ॥ १६ ॥
(१६ ) वह दुश्खसे सन्तप्त मनुष्योका परम मित्र, सत्यदचदवाला
गांधी दंशम्में उत्पन्न, अपने माईयोंडी मुक्तिके लिए साफिका देशकों गया)
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