सत्याग्रहगीता | Satyagrahgeeta

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Satyagrahgeeta by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्छ प्रयमोष्च्यायः * बिनीततमवेषो5्सों विलासबिर्तान्तरः | निधनान्‌ महता दैन्येनातिशेते निजेच्छया ॥ ११ ॥ (११ ) अतिविनीत वेशयाठा, विछाससे विरक्त सनवाला और अपनी इच्छासे ही महान निर्धनताको स्वीकार करते हुए यह निर्धनोसि भी बदुरर है। श्षुत्पिपासामिभूतेपु ग्रामीणननकीटिप । अस्पान्नेन निज देहमस्थिशेष॑ चक्ार सः ॥ १२ ॥ (१२) गांवफ करोड़ों छोगोंके भूख ओऔर प्याससे अभिमृत होनेके कारण उसने थोटा अन्न खाकर जपना शरीर केवछ हड्डीपसलीकी अवस्थाको पहुंचा दिया। पुरा क्रिलाफ़िकासण्ड मारतीया हि केचन | वाणिज्यव्यवसायार्थमगच्छनू परिवारिण: ॥ १३ ॥) (१३ ) पुरातन समये कईं एक भारतीय जन व्यापारके लिए परिवारसद्वित आक्रिका देशमें गए थे! अथ गच्छत्सु वर्षपु पीडितास्ते निवासिमिः । चोरादिमिः सुगौराह्ः कृष्णवर्णदुराग्रहे! ॥ १४ ॥ (१४ ) कुछ साऊ वीतनेपर गोरे र्वाठै, काले र्के साथ दुरामरइ करनेवाले वहीं रहनेवाले बोरादि जातियोंद्वारा उन्हें पीढा होने छग्ी। , पह्चयान्मोश्वमिच्छन्तों न्‍्यायघर्मविशारदम्‌। महात्मानमयाचन्त साहाय्ये परम जनाः || १५॥ (१५) उनके मयसे मुक्ति प्राप्त करनेके छिए उन भारतीयोंने न्यायघर्ममें पारंगठ महास्मासे सदायता सांगी । कैशातानां पर मित्रं सत्यवाय गाग्थिवेशनः । चान्धवानां विमेक्षार्थभाफ्रिकादेशमत्रजत्‌ ॥ १६ ॥ (१६ ) वह दुश्खसे सन्तप्त मनुष्योका परम मित्र, सत्यदचदवाला गांधी दंशम्में उत्पन्न, अपने माईयोंडी मुक्तिके लिए साफिका देशकों गया)




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