षडावश्यकवालाववोध वृत्ति | Shdavashyak Vriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तुत प्रत्य के प्रकाशन का पूर्व इतिहात
पिरकाल की प्रतीक्षा के बाद सिंधी जैन प्रत्य-माला का तझणप्रभाचार्यकृत 'वड़ावप्यकः
दालवबबोध वृत्ति' नामक यह एक विशिष्ट-प्रन्य विद्वनों के हाथ में उपस्थित हो रहा है
इस ग्रन्थ के प्रकाशन का इतिहास मेरे साहित्यिक-जीवन के प्रारंभ काल के जितना
बुराना है।
सन् १९१९ में पूना में रहते हुए सबसे भ्रधम मुझे इस ग्रन्य का परिचय हुआ। मैं उन दिनों
पूल में नूतल स्थापित भाण्डारकर ध्राच्यविद्या सशोधन मंदिर में राजकीय ग्रन्थ संग्रह का निरीक्षण
कर रहा था; प्रो. उठगीकर उस समय उक्त संग्रह के अधीक्षक थे। वे संग्रहगत पुराने
ग्रन्थों की मूवियों का निरीक्षण कर रहे थे, तब उन्होंने जैन प्रन्यों की सूची में 'पडावश्यक वृत्ति/
मामक इस प्रन्थ की बहुत सुन्दर प्राचीन हस्तलिखित प्रति (पांडुलिपि) मेरे सामते साकर रखी
और पूछा कि इस ग्रन्थ का कया विषय है?
घूकि इसके पहले मैने भी इस प्रन्य को देखा नहीं था इसलिये प्रो. उटगीकर की जिजशासा को
पूरी बरने के लिये मैने प्रन््य को हाथ में लेकर उसके आदि अन्त के कुछ पश्नों को उलट पुलंट किया,
तो मुझे मालूम हुआ कि आवश्यक सूत्र पर प्राचीत गुजराती भाषा में सुलिखित, बालजनों को बोध
कराने बी दुष्ट से लिया एया, विवरणात्मक बालादोध वृत्ति अर्थात् व्याख्या है ।
उस समय मेरे पास उक्त प्राज्य विद्या संशोधन मदिर के मुथ्य पुरफ्कर्ता स्व. प्रो. पांडुरंगः
दामोइर शणे दैठे हुए थे | डॉ. एुणे फर्गूसन कॉतिज में सरहत भाषा एवं तुलतादमर भाषा विशान
के मूख्याध्यापक थे। उन्होने जमंती जाकर हो. हमंन जेकोबी के परास्त प्राहव भाषा का विशेष
अप्यपन हिया था और पीएच, डी. वी डिग्री सी थो। प्राइत तथा अपक्रश भाषा में विखित
शाहित्य का उस ग़मय तक डिद्भातों को विशेष परिचय व्राप्त नहीं हुआ था। मुझे जैन साहित्य
एड पैन प्रन्ष भशरों का अच्छा अध्यपत एएं अवलोगन होने के कारण हो. गुणे मुशमे इस विपय
में विशिष्ट जातपारी प्राप्ल बरना चाहते थे। अतः उनका मेरे साथ चनिष्ट-सा गष्दन्ध हो रपा
था। जैत भशारों में प्राहत अपध्रश ठपा प्राघोत देशों भाषाओं में लिखित बहुत विशाल साहित्य
भरा पड़ है। इसहा परिचय मैं उतरों देवा रहता था। शुछ छोटी अपध्रशों रचताओं का मैने
उतरी परिषय दिशा हो दे उसको साम्पादित कर विसी संशोध्रतात्मक अप्रेजी पत्रिका में प्रगट
करता चाहे थे। उसी सिपतित में डॉ. गुणे को मैने इसे ग्रस्य का भो बुछ परिचय कराया ।
शापवरीध शस्य बा अपे उतको शमभशापरा। झराड़ी भाषा में बालरोध शब्द प्रधातित है) परन्तु
बह तो दाप: देइलावरी विधि के अप में धरयुरत होठा है। बावदोध अर्थात् देशवागरों लिपि मैं विधी
जपा छपी हुई मराषरी चुस्तर। इससे प्रात्त होशर डॉ. ने प्रूष्टा कि कया यह ग्रस्थ मराठी
अन्चा में है? तह मैंते उतशों बवादा कि दाबीन जैत ग्रस्यों का आदाज-जनों को जान प्रात
डशते दो दृष्टि में उत पर प्रचा न्त देश भाषा में शो कोई अथे, शिवरण या विदेषन आई चिये
जे हैं दे शाभान्प झाप से शाजाददोध के नाम से पद्चाने जाते हैं ।
जैक आम में आवापर सूधलायर नाम प्राशत भाषा का जो एफ मूत सूद है, उस पर
दारोर शणए में सप्एुर धारा थे अजेश ब्याध्यणों खवा टीडण अप वियो गई है; परचु बढ़
अशगरड ढुड मरहव हपा दाहप शा सर बडे जैन सुद्स्य रयी, पुडय या बाण मादि
शायासय जब छो हर आपरर इप्नौद है। इसरतविये इंधड़ा शान होता माबापह मानडर मध्य-
इाजीर रे१ दिदारों से आपने सर हो द्रविड़ देश घादा में विशरश अर जियते का प्रपन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...