श्री प्रकरण रत्नाकर | Shri Prakaran Ratanakar Part - 4

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Shri Prakaran Ratanakar Part - 4 by श्री हरिकृष्ण शर्मा - Shri Harikrishna Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2८0 $ ड् न्‍ः ह पड १ इंड्ियपराजयशतक, ' +िए 25628 ४ ') अंकुश चिछति री - ; पयरूप श्रंकुशे साध्या एवा जीवो, विपयविवसाचिछति के विपयने वश थे थरा तिएंति के० ढहें डे अने लएएंपि के० लज्काने पए मुत्त के० मूके 3, केटक्षाणएक्र जीवो गयासंका केणणएली मे शँका एवा, अने केवि के० केटलाक मरएं न गएंति के मरने पश नथी गएता ॥ ६३ ॥ विसय विसेएं जीवा जिणधम्म॑ हारिकृए हा नरय॑ ॥ वच्च॑तिजहा वि- त्तय निवारिजंबंजदत्तनिवों ॥ ६४ ॥ थी धी ताए नराएं जे जिएवय- णा मयंपिमुत्तूण ॥ चजगए विडंचणकरं पियंति विसयासवं घोरं ॥ ६० ॥ व्याख्या-विसयविसेएं के विपयरूप जे विप तेशे करीने जीवा के० जीव जिणथधस्मदारिक्तए के० जिनधर्म दारीने हा एति खेदे नरय॑ के० नरके जाय ठे. जह के० जेम चित्तय के० चित्रसाधु एवा जे ज्ञाए्ट तेएे निवारिल्॑ के० वास्यो एवो जे वंज्दत्तनिवों के० ब्रह्मदत्ततृप चक्रवार्ति जेम संसारने विपे मनुष्य जब हाख्रो तेम. ॥६४॥ घीधी के० घिकवार ठ! धिकार वे! ताएनराएं के० ते नरने, के जे के० जे नर जिए- वयणामरयंपि मुतूएं के० जिनवचनरूपी अमृतने मूकीने चठगष्ट विडंवकर॑ के० चारे गतिनी जे विमंवनानो करनार एवो जे विसयासवंधोरं के रोष एवों विपयासव के० विपयरूप मदिरि तेने पियंति केण पीए वे ॥ ६९॥ मरणेवि दीएवयएं माणधरा जे नरा न जंपंति ॥ ते विहुकुएंति बल्निं वालाएं नेह गह गिहिला ॥ ३६ ॥ सक्ोविनेव सकई माहप्पमहुप्फुरं जए जेसिं ॥ तेवि नरा नारीहिं कराविश्वा निञ्य दासत्त ॥ ६४॥ व्याख्या-मरेवि के० मरणकाल प्राप्त थयो उतां पए माएधरा जेनरा के मानने धारण करनार जे पुरुष ते दीनवयएं न ज॑पंति के० दीनवचन न बोले, अने तेज पुरुष, वालाएं नेहगहगिहिला के बाला जे ख्री॑ तेनो जे नेहगद के० स्तेहरूपग्रह तेशे करीने गहिला के घेहेला थया थरका बहिकुएंति के० लालन करे ठ, ॥ ६६ ॥ जेसिं के जेना माहप्पमुप्फुरं के” माहात्म्य अने आरंवर तेने जगतूमां शक्रोपि एटले ईछ पए खंझन नेवसकष्ट के० न करी शके. तेबी नरा के० तेवा पए पुरुषोने नारीहिं के नारीए निश्चय के० पोताना दासत्तं के० दासपणा प्रत्मे कराविआा के० कराव्या ॥ ६६ ॥ जब नंदणों महष्पा जिणनाया वयधरों चरमदेहों ॥ रहनेमी रायमई रायमई कासि हीविसया ॥३ण मयण पवणेण जए तारिसावि सुरसेल- निच्चला चक्षिआ ॥ ता पक्क पत्तसत्ताण इअर सत्ताण कावत्ता ॥ हए॥ व्याड्या-जउनंदए के० यादवनो नंदन एटले पुत्र, मदृप्पा जिएज्ाया के? महात्मा एवा जिन जे मेमिनाथ तेनो जाए, वयधरों के० जत्तधारी अने चरमदेहो के० चरमशरीरी एवो जे रहनेमी, ते रायमई के० राजीमती उपर रायमई के० रागने विषे के मति जेनी एवो आसीत्‌ के० होतो इवो. मादे हीविसया के० ही इति खेदे घिकार वे विषयने ! ॥ ६० ॥ मयशपवेण के० मदनरूपी पचने करी जह के० जो मेरपर्वत सरखा निद्चल्लाचलिया के० निश्वल एवा चत््या तो पढे पकपत्तसत्ताए के० पाका दंड वरखा जे जीवनां सत्व ठे एवा एअर के० इतर सत्ताए के० सत्व एवा जीवोनी कावत्ता के० शी वार्ता ! अर्थात्‌ जन अ> अौ 3




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