आचार्य विजय वल्लभ सरि ग्रंथ | Acharya Vijay Vallabh Suri Smrak Granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
752
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऐ. ग्ञाप६४। !
99घ१ - ब््यीत मुशछ॑ 58, जात्म- ब्षीत उगछुणती,
सथारा गम भारण भाडे, पथदशं5 थर्ण रेती,
अद्रशनी 9. थुष् भरेणर, क्षण क्षण तेंग्े थभं$,
ग्टनू - भन् - गशु खतर - खाडाशे धिवथि श्वृ३्पे. ६भें
खापध्शिणि. परणी. कषीषां, नवयुगनां.. सेषाशो |
तेथी तो ते बानरतवी. भुध्योी. मी फब्ननो:
“जुचण घनना ढगक्षा 8५२ धरम-धष्य नि ४२३,
८८८/यू व्यय? ना भावी नाराथयी खात्म- तेप्ट नि अथटे |
शुपा थी पीडता ब्य्नने, डी शान शा जपनु४
६ जथी सिजाता. भानपते सुड्ितिवु शु॒ सपवु १!
समाप्ण्नी.. अलेड. भानपी छणे रोटी फपाशे,
थारे.. ओेव ऐैथु. साथा. घर्म भारणे ब्यरों!
वि- पमेत नाम कह बाझमा शीदते रायो
अषभऊु५... शा. गरउलेस्ता. पतुणमा थे. नायो*
जभृूणाभा. पसीने. शीहते भमदछावीर नाभ पुश्धरो
“भछापीर तो उबण ब्हैनोना? -- सेतु शी६ भनावी
भष्डपीरना. सतानी.. सोओभे. खावी. छाथ मिक्षापी,
जे: सवार. भदावीरनी सप्शोी रहो... जवब्य॑पी,
पछी छझुणों ॥ सप्री छाप शासनता रसिया थार,
सय- प्रेम - महिसाना गीतों सारी इनिया गाशे ?!
जाम चढापी वध्शुभ?र ते तो उस्शापती १श,
द्रप्प क्षेत्र ने आण-लसावने सत्वर थीधा पिछाश,
समभाग्ट्ना रोभोनी 6 तो भरी थिश्ल्लसा शीपी,
खात्म- शुद्धि अरवाने आए... भछागीपधि धीपी
३६८
विष्श्यवत छुल/ नाभ सभोने जरूर अरणु सापो,
तारी प्रेम- सुवास सद्ध थे. घटवर भाडें. यापी |
शांतिक्षत्ष ी० १0७
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