कन्नड तोकहे रामायण | Kannad Tokhe Ramayan

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Kannad Tokhe Ramayan by लक्ष्मी नर्सिंग प्रसन्ना - Laxmi Narsingh parsanna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(9) ; 1 ें २ अर ऐकाक्षरी नाम । उच्चारण-संस्थान के अनुसार अक्षरों का कवर्ग, चवग आदि में वर्गीक रण । फिर प्रत्येक बर्य॑ के अक्षरों का क्रम ४ एक ही संस्थान में थोड़ा- धोड़ा ऊपर उठते हुए अनुनासिकु तक पहुँचना, आदि-आदि ऐसे अनेक गुण हैं जो अभारतीय लिपियों भें एकत्न, एकसाथ नही मिलते। किन्तु ये गुण समान रूप से सभी भारतीय लिंपियों में मौजूद है, अत: वे सब नागरी के समान ही विश्व की अन्य लिपियों की अपेक्षा 'सर्वाधिक वेज्ञानिक' हैं। सब ब्राहममी लिपि से उद्भूत है। ताड़पत्न और भोजपत्न की लिखाई तथा देश-काल-पात् न्क् अन्य प्रभावों के कारण विभिन्न भारतीय लिपियों के अक्षरों के रूप में यत्ष-तत्न परिवतंन, हिन्दी वाली 'नागरी लिपि' को कोई श्रेष्ठता प्रदान नही करता । भारत की मौलिक सब लिपियाँ 'नागरी लिपि' के समान ही श्रेष्ठ हैं । नागरी लिपि को 'सी' अपनाना श्रेयस्कर क्यों ? /तागरी लिपि” की केवल एक विशेषता है कि वह कमोवबेश सारे देश में प्रविष्ट है, जबकि अन्य भारतीय लिपियाँ निजी क्षेत्रों तक सोमित हैं । बहीं यह भी सत्य है कि नागरी लिपि में प्रस्तुत और विद्येष रूप से खड़ी बोली का साहित्य, अन्‍य लिपियों में प्रस्तुत ज्ञानराशि की अपेक्षा कम गौर नवीनतर है। अतः समस्त भाषाओं की ज्ञानराशि को, सर्वाधिक फंली लिपि “नागरी” में अधिक से अधिक लिप्यन्तरित करके, क्षेत्रीय स्तर से उठाकर सबको सारे राष्ट्र में, यहाँ तक कि विश्व में ले आना परम घममं है। विश्व की सब भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान (सत्साहित्य) तो है सात्मा, और 'नागरी लिपि! होना चाहिए उसका पर्यटक शरीर । अन्य लिपियों को बनाये रखना भी फरतंप्ण है । चस्तुतः यह परम धर्म है कि समस्त सदाचार साहित्य को नागसी में तत्परता से प्राचुये में लिप्यन्तरित करना। किन्तु साथ ही यह भी परम धर्म है कि देशी-विदेशी अन्य सभी लिपियो को उत्तरोत्तर उन्नति के साथ वरक़रार रखना। यह इसलिए कि सबका सब कभी लिप्यन्तरित नहीं हो सकता। भत: भन्म लिपियों के नष्ट होने ओर नागरी लिपि मात्न के ही रह जाने से बिश्न को समस्त ज-लिप्यन्तरित शानराशि उसी प्रकार लुप्त-सुप्त होकर रह नामगी जंसे पाली, प्राकृत और अपभश्ंश, सुरयानी आदि का वाहूमय रह गबा। जगत तो दूर, राष्ट्र का ही प्राचीन आप्तज्ञान विलुप्त हो जायगा । तागरी जिपि बालों पर उत्तरदायित्व विश्वेष ! हि इन दोतों परम धर्मों की पूत्ति का सर्वाधिक भार तागरी लिपि बालों पर है, इसलिए कि उनको सम्पर्क लिपि! का श्रेष्ठ आसन प्रदत्त है। मैं कह सकता हूँ कि उन्होंने अपने कतेब्य का, जैसा चाहिए था, बैसा निर्वाह तहीं किया। परन्तु उसकी प्रतिक्रिया में अन्य ने पा के जवाब में अपराध” नहीं य लिपि वालों को भी “अपराध करता चाहिए। कोयला! विहार का है




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