राजस्थानी शब्दकोश भाग 4 | Rajasthani Sabad Kos Part 4

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Rajasthani Sabad Kos Part 4  by प्रह्लाद सिंह - Prahlad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४प्रू३ चंग च हे व व--नागरी वरणुंमाला का उन्नीसवा व्यजन-वरणुं जो उकार, विकार श्रौर | वकनाठ, घकनाछि, वकनाछी--देखों 'नकनाछ' (रू. मे ) ” अतस्थ श्रद्धे व्यजन माना जाता है । इसका उच्चारण दत्त्योष्ठ है । उ०--१ बंकनाव्ठ घर झभरा भरि हैं, श्ररघ उरघ घर निरकर भरि उच्चारण मे जिल्ला-पदच उकार के समान-सवृत्त या धर्घ-सवृत्त है। --श्रवुभववाणी ष ्ी पर पहुंच गौ की गा बा हर बन नि उ०--२ श्रजरामर का मारग श्रीौछा, सौछा संत पिछारे । बक- के .. 1... हा इस ते पर नाछि मेर सचरि के, भवरगुफा सुख माणीे । --श्रयुभववाणी थे उ०--रे पलटि पूरब श्रपुरब पाणा, करि घकन बकनस. पु - १ गवें, झ्मिमान, घमण्ड । समेत वाद अिननगार -अनुभववाणी -६ दिप रघुनायक दीन खद घायक सेवग पाठ । च०-१ दिपे रघुनायक दी दयाठ, पुणा वकनाडी--देखो '्वकनाछ' (रू मे ) चढ़े दसमाथ विभजण घंक, लद्ीवर देख भभीखण लक । नर ण. प्र. उ०--र बैहू सायवी पगा राखीवें, वाठी धरा वचुटी घक । संबदा चकि, चकी--१ देखो 'वक' (रू भे ) उ०--वंकि पटा फूलहथा, सोरि खिलकार कुसती । तस कसीस भ्रनडा बेहू तणी सर, भादु श्रनड तुद्दाठी ्रंक ।.. --दुरसौ झाढी लैजमा, जजर गती जाजत्री । नस पर २ देखो 'बाक' (रू भे ) र देखो 'बाकी' (रू मे ) उ०-दरपइ दीठइ दोरडइ, साप न आ्राणइ सक, वीहइ बिलाडा- उ०--वारण सिर तोड़े खग बकी । ताण स्र गणि श्रढारह टकी । बच्चडइ, वाघिणी वालइ वक । नासा. का. प्र नस प्र ३ देखो 'वाकों' (मह ; रू भे.) बंकीनाछ्ि, चकीनाढी--देखो 'बकनाछ' (रू. में.) ४ देखो 'बक' (रू मे ) उ०--बकिनाछ्ि चढावे वाटा, घर श्रटके हीरामण घाटा । ५ देखो “वक्त (रू मे.) सुपर द०--दीहा पाधर बंक गय, भुज धरिये कुछ-मार । --गु रू ब | वेकेण--१ देखो 'वाकौ' (मह रू भे ) बकड--१ देखो “बाकी (महू, रू मे] वि वर्क चकेशा, वाणी मत्र तत सा बुद्धी । दुरजण सज्जण २ देखी 'बाक' (मह, रू भे ) थाने सज्जन होइ दुफ्जणाकारें । ६. एराछ, ३ देखो श्वक' (सह , रू मे ) २ देखो वक़' (महू; रू ने) बकडी--देखो 'बाकी' (श्रल्पा , रू भे ) बकी --देखो “बाकी (रू मे ) उ०--कटिंतटि हूँती वकडी, काढी करि करवालू । तब श्रग्गीउ उ०--१ ढक जस जेती घरण, वडपण श्रके वार । इणा वे झावी करी; करि वलगु ततकाल्‌ । जमा का प्र 'पातल” श्रगै, सह सके ससार । --जैतदान बारहृठ बकडो--देखो 'बाकी' (श्रल्पा-, रू मे.) उ०-एर वर्दे अगदेस हुवा जोध घका । लगा कीकर भफ्ोक प्राजाछ् उ०-र “वीरम” भाई वकड़ी, ज्यू बेटी जगमाल । दत क्‍्यावर 'चावा सका. 1 -सूप्र दुनी, साहा उर रा साल । “वी. मा उ०-ई मिछ्िया वका राठवड चितहित राख वचाव । सुख गाडी उ०--र भडा दुबाहा बकडा, हुई सनाहा सत्यि । सेघ निवाहा कीघी सगे, रीघी हाडी राव । “रा हू सुरमा, राहा वेध श्ररत्थि । रा. रू. उ०-४ पेखेवा पतिसाह नू 'प्रजन' थयी झसवार, गति घंकी दिन (स्वी वकडी) पाघर, छत देखे ससार । रा कं. घकट -देखो श्वकट' (रू थे)... (ना मा) घंक्रत-देखो 'वक़' (मह, रू थे ) वंकति--देखो 'वक़' (रू भे)) उ०--माहा जटीयछ भू गट भेक चक्रत मयक, श्रलक्त सेस मेचख उ०--छट सुदर बीख सतेज घणा, तन श्रोप बच्चे गढ़ रूप तणा । ऊथाकी । करण पत प्रमा परभात रा समोकर । सेज पुज नाथ रा दुति वकति तुँढ लगाम दिया, कुछवत्तिय घूँघट जाशि किया । तसी ताछी 1 --भीमसिंह जी री गीत एस रू | वग-स पु. [सि] १ जस्ता या रांगा नामक घातु 1




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