प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि | Pratyahaar, Dhaarna, Dhyan aur Samadhi

Pratyahaar, Dhaarna, Dhyan aur Samadhi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७ ) जाति के, जिस सिद्धान्त के विरुद्ध, जिस काय के विरुद्ध जितनी घ्रधिक घणा द्ोगी उससे घचने उसे नष्ट करने के भाव उत्तने _ ही प्रथल होंगे । जो पाप से द्वेप करता हे निश्चय दी उसके मन में पुण्य सम्चय के लिए बहुत चत्माद दोगा, जो अज्ञान से छुद्ता हूं उसे प्तान की उन्नति में अधिक रुचि होगी । भला भुलाने में इधर से जितना धक्का दिया जाता है उधर से भी उतने दी जोर से बापिसी '्राती हैं। घुराइयों से क्रोध करने पाले ही अच्दाइयों का सम्धय श्रौर प्रसार कर सकते हैं. । जो मटियल्त सांप की तर मुर्दो मत के हूं उनके लिए सब घान घाईस पसेरी रहेंगे । उपेक्ता, निराशा, श्ालस्प, अनुत्साह उन्हें घेरे रहेगे, ऐसे लोगों फो जीवित सतक” कद्दा जाता है। पृथ्वी माता को बोम बढ़ाने वाले, अन्न को टट्टी करने वाले यदद मुर्दे मनुष्य जीवन निरथेक करते हुए जैसे तेसे थपनी लीला समाप्त कर जाते हैं। 'आाष्यार्म दिया का 'झाविष्कार इसलिए नददीं हुआ है कि वद्द इस भकार के भू-भार मुर्दो' की संख्या यढ़ावे उसका उद्देश्य सतज, सच्तम, क्रिया कुशल, रत्साही एवं सच्चे भ्रर्थो' में मनुप्यना घारण करने वाले मानवों की दृद्धि करना है इसछिएए मानसिक जगत की शुद्धि करने, मनोवत्तियों को सुसंस्कृत घनाने, मनको बश में करने के झभ्यासों से पूबे यह श्रावश्यक समा गया है कि उच्च गुणों की 'ओर चित्ता को प्रदत्त किया जाय । स्थिरता 'ौर शान्ति, श्रेष्ठता में ही हैं, तामसिक भअधम मारे पर चलने से तो मनकी 'अशान्ति एवं अस्थिरता कई गुनी दद्‌ जाती दूं ऐशी दशा में उसे एकाम्र करना कठिन होता है। सतोशुण की डृद्धि तभी हो सकती है जब तमोगुण से घणा की शादे.। ऊँची दीवार उठाने के लिए कीं ही डी दी दूसरी जगह गढढ़ा होगा, जहां की मिट्टो से इंट बनेंगी वहों की जसीन नीची दो




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