फुलझड़ियाँ | Phulajhadiyan

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Phulajhadiyan by काका हाथरसी - Kaka Hatharasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय * 19 सन्‌ 1942 में उन्होंने आज की दुनिया नाम से एक सामाजिक नाठक भी लिखा, जो उसी वर्ष “अग्रवाल नवयुवक सभा द्वारा मभिनीत किया गया 1 विदुपषक का अभिनय काका के हास्य-भवन मे प्रवेश का द्वार भी बना । हास्प-कवि के रूप में उन्हे सबसे पहला मच मिला अपने नगर मे लगने वाले दाऊ जी के मेले मे। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला 6 (देवछट) पर हाथरस मे दाऊ जी का मेला लगता है। (हाथरस श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम जी का कीडा-क्षेत्र रहा है। उन्हींके नाम पर यहा एक मदिर बना हुआ है ।) सन्‌ 1944 मे आयोजित कवि-सम्मेलन में अन्य स्थानीय कवियों के साथ काका को भी आमत्रित किया गया । एक गैस के हूडे के प्रकाश में 10-12 कवियों को जनता ने श्रद्धा के साथ सुना। कवि सम्मेलन समाप्त होते ही हडा बुझा दिया गया और कवियों को पूडिया खिलाकर छुट्टी दे दी गई । पारिश्रमिक तो दूर की बात थी, उस समय के एक कवि-सम्मेलन आयोजक के कथनानुसार--'तब ऐसे आयोजनो पर केवल 20-25 रुपये खर्च जाता था ।' उन ६9५५ के पश्चात्‌ काका की इस भचीष सीणा का विघ्तार फ्रश्म हो गया । अलीगढ, सथुरा, अतरोली, दुर्जा, इगलास आदि मे आयोजित किए जाने वाले कवि-सम्मेलनो में अत्य हाथरसी कवियो के साथ काका को भी अभिवार्य रूप से आमत्रित किया जाता था। सन्‌ 1946 में “काका की कचहूरी”' नाम से काका की हास्य-कविताओं की प्रथम पुस्तक प्रकाशित हुईं । इसमे उन्‍होंने अपनी कविताओ के साथ ही तत्कालीन कई अन्य अच्छे हास्य-कवियों की रचवाओ को भी सकलित किया है। इसके पश्चात्‌ दाढी रखने तक उनकी दो पुस्तक और प्रकाशित हुईं--पिल्ला (1950), म्याऊ (1954)1 काका की दाढ़ी, जो अब उसका 'ट्रेडमार्क' ही बन चुकी है, सत्‌ 1954 में उनके चेहरे पर अपना अधिकार जमा बंठी । इसी दाढी के प्रताप से काका जनता के प्रिय कवि बन गए। काका ने स्वय दाढी की महिमा इस प्रकार गाई है: “काका दाढो राखिए, विन दाढी मुख सून 1 ज्यों मसूरी के विना, व्यर्थ देहरादुव ॥॥ व्यर्थ देहरादून, इसी से नर को शोभा । दाढ़ी ही से प्रमति, कर गये सत विनोबा ॥॥ मुन विसिष्ठ यदि दादी, मुह पर नही रखाते । तो कया वे भगवान राम के गुर बव जाते ? सन्‌ 1957 में भारत के प्रथम स्वतत्रता-सम्राम को शताब्दी मनाई गई | इस वर्ष दिल्‍ली के लाल विले मे आयोजित कवि-प्रम्मेलन में काका को भी प्रथम वार आमत्रित किया गया 1 परन्तु इस बार प्रत्येक आमद्रित कवि से 'क्राति! पर एक




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