फुलझड़ियाँ | Phulajhadiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिचय * 19
सन् 1942 में उन्होंने आज की दुनिया नाम से एक सामाजिक नाठक भी
लिखा, जो उसी वर्ष “अग्रवाल नवयुवक सभा द्वारा मभिनीत किया गया 1
विदुपषक का अभिनय काका के हास्य-भवन मे प्रवेश का द्वार भी बना ।
हास्प-कवि के रूप में उन्हे सबसे पहला मच मिला अपने नगर मे लगने वाले
दाऊ जी के मेले मे। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला 6 (देवछट) पर हाथरस मे दाऊ जी का
मेला लगता है। (हाथरस श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम जी का कीडा-क्षेत्र रहा
है। उन्हींके नाम पर यहा एक मदिर बना हुआ है ।) सन् 1944 मे आयोजित
कवि-सम्मेलन में अन्य स्थानीय कवियों के साथ काका को भी आमत्रित किया
गया । एक गैस के हूडे के प्रकाश में 10-12 कवियों को जनता ने श्रद्धा के साथ
सुना। कवि सम्मेलन समाप्त होते ही हडा बुझा दिया गया और कवियों को
पूडिया खिलाकर छुट्टी दे दी गई । पारिश्रमिक तो दूर की बात थी, उस समय के
एक कवि-सम्मेलन आयोजक के कथनानुसार--'तब ऐसे आयोजनो पर केवल
20-25 रुपये खर्च जाता था ।'
उन ६9५५ के पश्चात् काका की इस भचीष सीणा का विघ्तार फ्रश्म हो
गया । अलीगढ, सथुरा, अतरोली, दुर्जा, इगलास आदि मे आयोजित किए जाने
वाले कवि-सम्मेलनो में अत्य हाथरसी कवियो के साथ काका को भी अभिवार्य रूप
से आमत्रित किया जाता था।
सन् 1946 में “काका की कचहूरी”' नाम से काका की हास्य-कविताओं की
प्रथम पुस्तक प्रकाशित हुईं । इसमे उन्होंने अपनी कविताओ के साथ ही तत्कालीन
कई अन्य अच्छे हास्य-कवियों की रचवाओ को भी सकलित किया है। इसके पश्चात्
दाढी रखने तक उनकी दो पुस्तक और प्रकाशित हुईं--पिल्ला (1950), म्याऊ
(1954)1
काका की दाढ़ी, जो अब उसका 'ट्रेडमार्क' ही बन चुकी है, सत् 1954 में
उनके चेहरे पर अपना अधिकार जमा बंठी । इसी दाढी के प्रताप से काका जनता
के प्रिय कवि बन गए। काका ने स्वय दाढी की महिमा इस प्रकार गाई है:
“काका दाढो राखिए, विन दाढी मुख सून 1
ज्यों मसूरी के विना, व्यर्थ देहरादुव ॥॥
व्यर्थ देहरादून, इसी से नर को शोभा ।
दाढ़ी ही से प्रमति, कर गये सत विनोबा ॥॥
मुन विसिष्ठ यदि दादी, मुह पर नही रखाते ।
तो कया वे भगवान राम के गुर बव जाते ?
सन् 1957 में भारत के प्रथम स्वतत्रता-सम्राम को शताब्दी मनाई गई | इस
वर्ष दिल्ली के लाल विले मे आयोजित कवि-प्रम्मेलन में काका को भी प्रथम वार
आमत्रित किया गया 1 परन्तु इस बार प्रत्येक आमद्रित कवि से 'क्राति! पर एक
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