कान्यकुब्जप्रकाशिका | Kanyakubjaprakashika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
58
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[४४७०-६७
. २१ )
के खिचघान से यज्ञ को करसके लड़ ऋषशी चर जोडी
शुक्ल यजसे यजक्षलित्रि करें जह प्रकलाउवय और ऊ पे
से करे खुद कृष्लाध्यये कहाता है ये यज के दो सेंद् दोने से
दो अक्ार के अच्चयें हैं ॥ २७ ४
याज्ञिकाइयसथी याज्ञ-स्स्नातक/क्रत्कोमखी ।
खयाजोी पोौलिकश्च स्मात्तेपाण्डे यमिश्वका: ॥२८॥
साध्यन्दिनी यःऋातोयः कठकःशाःकलीयक:
सोद्गलीयःकौथ॒मोयो मोमिलीयसोहिरण्यकः ॥२«॥।
इत्योदिवहवोसेदा-श्शाखासतच्रसमाण्वयात् ।
जात्ताजिज्ञासुभिरिति चरणव्यूहईद्यताम् शहइण। |
शाखा और कहरप सुत्रों के मिल लिचानों से यजक्ष करने
खाले अर कहरकों के यार फिल, ऊअपवखसची, याक्ष, स्वातक, क्रत॒क, सरदी
ससवयाजी, श्रीतिक, स्साक्त , मिश्रक, साच्यन्दिनोय, कासोय,
'कठक, शाकलीयक, सौद्धलीय, कौथमीय, गोौलिलीय, छिरणपक
जा दिरिययक्रेशीय, इत्यादि जहुत उपाधि हुई हें जिनका दया-
रूपोश जिक्ासु लोगों को चरणा व्यद -ग्रल्थ .में देखना चाहिये
॥ रुप: थे रेल ॥ ३० #॥ ४!
-अनन्न्योपाख्यातयस्तेषों विद्यावहंगणापश्रयात ।
'समुदुभूत्ताद्वि जोग्यू चु विख्य'्तास्सल्तिभुत्तले ४३९
विद्या आर अनेक गुझों के कारण अाहनरकों को-अलन्यभी -
अनेक उपारूयासियां डुइ हैं जो भमयडल व्ले मिल २.- प्रान्तों
में प्रचलित हैं सब उ॒ुप्राथियों को सब नहों जानते ॥ ३९ ॥ :
तदभेदाश्वप्रकथ्यन्ते संध्वेपादेवक्केचन ।. ,
विद्यारत्नस्तत्वनिधि-बैंद्ान्तीताकिकरुतेथां ॥३२॥
सर्कंपज्चाननस्तर्को तकोलल्भारए व च-1
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