आयुर्वेद - विज्ञानसार | Ayurved - Vigyanasar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मोपसर्गिकोपरंशाधिकारः | ७ ॥ १६ श्वयथों मत्रकच्छे च कासे खासे हृदामये | भेषज गदित बद्यन-तत्तदत्र प्रयोजयेनू ९७ ! शोध शेम, सृत्रकृष्छूरोंग, खासी, सांस आर हृदयरोग में लिखी हुई सारी दवाय माय शापराग हद [ कह 11 नैंव व्यावि: गर्म बाया-न्नि खिलयेदि कम्पंमि क्रम्यास्द बा क्रया ताह लहरों सिफावाय: । ०८! वाद उपर्युक्त चिकित्साओं से बोमारी शान्ति न होसके तो लघुहस्त बेच उर कपाणा में शब्रकर्म करें 7 ६४ ॥ समदवस्वासध्य वा महंभ्ग्रहयारथ | पशु कास्थ्नोग्रह दिशो: अम्य॑ नाम त्रिकूचेकरम |! ९० | प्रवेश्याचहितों रतन चक्ट्लोहानमें च निःशे पं मिह रेडस्ब व्याधिरेव प्रशास्यति ॥ १०० ॥ समुद्र ओर वल्यु (४७वीं ओर ८वीं) महीध्र मोर ग्रह (८वचीव €९वों) था ग्रद आर दिक ( ९ वीं आर १० वी | पशुकाओं (पालियों) के दीच में ड्री रि यदुनकी रक्षा ऋत हर िकर्वेकाशलकों पस्माकर सभी पानी को विकाल उप्त उसमतायाग से हाता |दे ७ ६€६०१००२ | ततो व्यवायमध्वान व्यायाम शिक्षिरं जलूम्‌ अहः्वापं झुर्च क्रोघं त्यजेद्ष गदोत्यितः।| १०१९ इसके बाद श्वष तक खस्ीसंग, रास्तागमन, कसरत, टैदा पानी , पीचा, दिलतमें ता; चिल्दा और क्रोध करना ने चाहिए ॥ १०४ ॥ इत्युरल्तोबयाधिकारः समापः ॥ ३ ४ अं. धोपसर्गिकों पदंशा कक ः& के औ+.«. अथापसागकापद्दशा। घकार। ॥ ४ |॥ तन्नोपसमिकोपदंशनिदानसू-- वहुसड्डरसेवाभ्यां संजातो जननेन्द्रिये । त्रणः कष्टतरों घोरो नानारोगप्रकाशक: १०२ । उपदंशवाली स्थियों के साथ संग करने से किट्ठमें अचिक दःखदायक और भया- 6 घाव ( ज्खूम ) होता है | इससे अनेक रोग पेंदा दोते हैं ॥ १०२ ॥ अथोपसभमिकोपदंश्स्य नामानि--- विफोपदंश: पापोप-दझ इत्येबसीरितः । स्‌ एव हि बुधे: पूर्वें: कथितश्योपसमिकः (॥ १०३ ॥




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