आयुर्वेद - विज्ञानसार | Ayurved - Vigyanasar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मोपसर्गिकोपरंशाधिकारः | ७ ॥ १६
श्वयथों मत्रकच्छे च कासे खासे हृदामये |
भेषज गदित बद्यन-तत्तदत्र प्रयोजयेनू ९७ !
शोध शेम, सृत्रकृष्छूरोंग, खासी, सांस आर हृदयरोग में लिखी हुई सारी दवाय
माय शापराग हद [ कह 11
नैंव व्यावि: गर्म बाया-न्नि खिलयेदि कम्पंमि
क्रम्यास्द बा क्रया ताह लहरों सिफावाय: । ०८!
वाद उपर्युक्त चिकित्साओं से बोमारी शान्ति न होसके तो लघुहस्त बेच उर
कपाणा में शब्रकर्म करें 7 ६४ ॥
समदवस्वासध्य वा महंभ्ग्रहयारथ |
पशु कास्थ्नोग्रह दिशो: अम्य॑ नाम त्रिकूचेकरम |! ९० |
प्रवेश्याचहितों रतन चक्ट्लोहानमें च
निःशे पं मिह रेडस्ब व्याधिरेव प्रशास्यति ॥ १०० ॥
समुद्र ओर वल्यु (४७वीं ओर ८वीं) महीध्र मोर ग्रह (८वचीव €९वों)
था ग्रद आर दिक ( ९ वीं आर १० वी | पशुकाओं (पालियों) के दीच में ड्री
रि यदुनकी रक्षा ऋत हर िकर्वेकाशलकों पस्माकर सभी पानी को विकाल
उप्त उसमतायाग से हाता |दे ७ ६€६०१००२ |
ततो व्यवायमध्वान व्यायाम शिक्षिरं जलूम्
अहः्वापं झुर्च क्रोघं त्यजेद्ष गदोत्यितः।| १०१९
इसके बाद श्वष तक खस्ीसंग, रास्तागमन, कसरत, टैदा पानी , पीचा, दिलतमें
ता; चिल्दा और क्रोध करना ने चाहिए ॥ १०४ ॥
इत्युरल्तोबयाधिकारः समापः ॥ ३ ४
अं. धोपसर्गिकों पदंशा कक ः& के औ+.«.
अथापसागकापद्दशा। घकार। ॥ ४ |॥
तन्नोपसमिकोपदंशनिदानसू--
वहुसड्डरसेवाभ्यां संजातो जननेन्द्रिये ।
त्रणः कष्टतरों घोरो नानारोगप्रकाशक: १०२ ।
उपदंशवाली स्थियों के साथ संग करने से किट्ठमें अचिक दःखदायक और भया-
6 घाव ( ज्खूम ) होता है | इससे अनेक रोग पेंदा दोते हैं ॥ १०२ ॥
अथोपसभमिकोपदंश्स्य नामानि---
विफोपदंश: पापोप-दझ इत्येबसीरितः ।
स् एव हि बुधे: पूर्वें: कथितश्योपसमिकः (॥ १०३ ॥
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